तामिस्र ब्रह्माण्ड ३.४.३२.११(तमिस्रा : कालचक्र के षोडश पत्राब्ज पर की शक्तियों में से एक), भागवत ५.२६.७(२८ नरकों में प्रथम तामिस्र का नामोल्लेख), लिङ्ग २.९.३३(द्वेष की तामिस्र व अन्धतामिस्र संज्ञा का उल्लेख ; तामिस्र के १८ व अन्धतामिस्र के १८ भेद होने का उल्लेख), विष्णु १.६.४१(वेदों व यज्ञों की निन्दा करने वालों द्वारा प्राप्त नरकों में से एक), ३.११.१०४(सन्ध्या हेतु न बैठने वालों द्वारा तामिस्र नरक की प्राप्ति का उल्लेख), स्कन्द २.१.१२.१० (२८ नरकों में से एक ; वित्त, अपत्य व कलत्र हर्त्ता को तामिस्र नरक की प्राप्ति), ५.३.१५५.८८ (भार्या त्याग से तामिस्र नरक प्राप्ति का उल्लेख ) । taamisra
ताम्बूल गरुड ३.२९.६३(ताम्बूल काल में प्रद्युम्न के ध्यान का निर्देश), पद्म ४.६.३१(देवालय में ताम्बूल भक्षण आदि से गणिका द्वारा स्वर्ग लोक प्राप्ति का कथन), ब्रह्माण्ड ३.४.४३.१३(त्रिपुरा सुन्दरी आदि के पूजा द्रव्यों में ताम्बूल का उल्लेख), भागवत ८.१६.४१(विष्णु की अर्चना में नैवेद्य के पश्चात् ताम्बूल अर्पण का उल्लेख), १०.४२.१३(मथुरा के व्यापारियों द्वारा कृष्ण व बलराम की ताम्बूल आदि से अर्चना का उल्लेख), १०.४८.५(कृष्ण मिलन से पूर्व त्रिवक्रा द्वारा ताम्बूल के व्यवहार का उल्लेख), १०.५३.४८(रुक्मिणी द्वारा विवाह से पूर्व विप्र-स्त्रियों की ताम्बूल आदि से पूजा करने का उल्लेख), १०.८०.२२(कृष्ण द्वारा दरिद्र ब्राह्मण सखा को ताम्बूल प्रस्तुत करने का उल्लेख), १०.८५.३७(बलि द्वारा कृष्ण व बलराम की अर्चना हेतु प्रयुक्त पूजा द्रव्यों में से एक), शिव १.१६.१७ (पूजा में ताम्बूल अर्पण से भोग प्राप्ति का कथन), ५.२०.२३ (पांच राजैश्वर्य विभूतियों में नारी, शय्या, पान, वस्त्रधूपविलेपन तथा ताम्बूल भक्षण की गणना), स्कन्द ३.१.५.१३६(ललिता द्वारा उदयन को ताम्बूली स्रज देने का उल्लेख), ५.१.३०.४३ (सर्पों द्वारा भुक्त भोगों में सात प्रकार के ताम्बूल का उल्लेख), ५.१.६०.५८ (ताम्बूल दान का माहात्म्य), ६.२१० (ऐरावत द्वारा अमृत कमण्डलु भञ्जन से ताम्बूल की उत्पत्ति, वाणी वत्सरक नृप द्वारा ताम्बूल भक्षण व पृथिवी पर ताम्बूल की स्थापना), लक्ष्मीनारायण १.३३ (ताम्बूल चर्वण से लक्ष्मी में मद के आविर्भाव की कथा), २.२९७.८५(कृष्ण द्वारा कुशला पत्नी के गृह में ताम्बूल भक्षण का विशिष्ट कार्य), कथासरित् २.१.८१ (वसुनेमि नाग द्वारा उदयन को ताम्बूली पान लता व माला आदि प्रदान करने का उल्लेख ) । taamboola/taambuula/ tambula
ताम्र गरुड २.१८.२१(ताम्र उदपात्र दान से प्रपासहस्र दान फल प्राप्ति का उल्लेख - मृतोद्देशेन यो दद्यादुदपात्रं तु ताम्रजम् । प्रपादानसहस्रस्य तत्फलं सोऽश्नुते ध्रुवम् ॥), २.२९.१४(ताम्र व लोह मिश्रण से जन्म होने का उल्लेख - मिश्रितं लोहताम्रं तु तथैव जन्म जायते । तस्मैवं वायुभूतस्य न श्राद्धं नोदक क्रिया ॥), देवीभागवत ५.३.३ (महिषासुर का कोषाध्यक्ष - धनाध्यक्षस्तथा ताम्रः सेनायुतसमावृतः ॥), ५.५.५१ (ताम्र का यम व वरुण से युद्ध- दण्डेन निहतस्ताम्रो यमहस्तोद्यतेन च । न चचाल महाबाहुः संग्रामाङ्गणतस्तदा ॥), ५.११.३१ (देवी के सम्बन्ध में ताम्र द्वारा महिषासुर को परामर्श, अपशकुन का कथन), ५.१४.३५ (ताम्र का देवी से युद्ध, देवी द्वारा वध - ताम्रो मुसलमादाय लोहजं दारुणं दृढम् । जघान मस्तके सिंहं जहास च ननर्द च ॥), पद्म ६.६.२७ (बल असुर के मूत्रज? के ताम्र बनने का उल्लेख - कांस्यं पुरीषं रजतं वीर्यं ताम्रं च मूत्रजम्।), ब्रह्मवैवर्त्त २.३०.४४ (नरक में ताम्र कुण्ड प्रापक दुष्कर्म), २.३०.८८ (ताम्र व लौह चोरी पर वज्र कुण्ड नरक प्राप्ति का उल्लेख), ब्रह्माण्ड २.३.७.२३४(प्रधान वानरों में से एक), २.३.७१.२४७(कृष्ण व सत्यभामा की सन्तानों में से एक), भागवत १०.६१.१८ (ताम्रतप्त/ताम्रपत्र : कृष्ण व रोहिणी के पुत्रों में से एक), मत्स्य ४७.१७(कृष्ण व सत्यभामा के पुत्रों में से एक), ५८.१८(तडाग आदि निर्माण में ताम्र निर्मित कुलीर, मण्डूक, वायस दान का निर्देश - ताम्रौ कुलीर मण्डूका वायसः शिंशुमारकः।), लिङ्ग १.५०.१० (ताम्राभ पर्वत पर कद्रू- पुत्रों / सर्पों का वास - ताम्राभे काद्रवायाणां विशाखे तु गुहस्य वै।। ), वराह १२९.२१ (ताम्र धातु की भगवत्प्रियता, ताम्र धातु की उत्पत्ति के प्रसंग में गुडाकेश असुर का भगवत्कृपा से ताम्र में रूपान्तरित होना - ततः प्रभृति ताम्रात्मा गुडाकेशो व्यवस्थितः ।।), १८४(ताम्र प्रतिमा प्रतिष्ठापन विधि), वायु २६.३६(१४ मुखों वाले ओङ्कार के उ स्वर वाले मुख से तामस मनु की उत्पत्ति का उल्लेख - चतुर्थात्तु मुखात्तस्य उकारः स्वर उच्यते। वर्णतस्तु स्मृतस्ताम्रः स मनुस्तामसः स्मृतः ।।), ९९.१२६/२.३७.१२२(ताम्ररसा : रौद्राश्व व घृताची की १० पुत्रियों में से एक, आत्रेय प्रभाकर - पत्नी), विष्णु ५.३२.२(ताम्रपक्ष : कृष्ण व रोहिणी के पुत्रों में से एक), शिव २.१.१२.३३ (आदित्यों द्वारा ताम्रमय लिङ्ग की पूजा - लक्ष्मीश्च स्फाटिकं देवी ह्यादित्यास्ताम्रनिर्मितम् ।।), स्कन्द १.१.८.२३(भानु द्वारा ताम्रमय लिङ्ग की अर्चना का उल्लेख), ४.२.६१.२०२ (ताम्र वराह का संक्षिप्त माहात्म्य - दक्षिणे भवतीर्थाच्च ताम्रद्वीपादिहागतः ।। नाम्ना ताम्रवराहोस्मि भक्तानां चिंतितार्थदः ।। ), ४.२.८४.६६ (ताम्र वराह तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ततस्ताम्रवराहाख्यं तीर्थं चैवातिपावनम् ।। यत्र स्नानेन दानेन न मज्जेदघसागरे ।। ), ४.२.९७.५८ (ताम्र कुण्ड का संक्षिप्त माहात्म्य - तदग्रे ताम्रकुंडं च तत्र स्नातो न गर्भभाक् ।।), ५.३.९२.२२ (महिषी दान के अन्तर्गत आयस के खुर तथा ताम्र के पृष्ठाभूषण बनाने का उल्लेख - आयसस्य खुराः कार्यास्ताम्रपृष्ठाः सुभूषिताः ।), लक्ष्मीनारायण १.३७०.७७ (नरक में ताम्र कुण्ड प्रापक कर्मों का उल्लेख), १.५७५.८५ (विष्णु पूजन में ताम्र पात्र की प्रशस्यता, गुडाकेश नामक असुर की वसा, मांसादि की ताम्र स्वरूपता - मम चक्रहतस्यैतद्वसामांसादिकं च यत् । ताम्रं नाम भवेद् देव पवित्रीकरणं शुभम् ।।), ४.८३.५४ (नागविक्रम राजा के ताम्रास्त्र से विद्युदस्त्र का शमन - नागो मुमोच ताम्रास्त्रं विद्युत्तत्र लयं गता ।।), कथासरित् ७.१.८२ (दत्तशर्मा नामक ब्राह्मण का राजा से ताम्र धातु से स्वर्ण निर्माण की युक्ति का निवेदन ) । taamra/ tamra
ताम्र - ब्रह्माण्ड ३.४.३१.६६(ताम्रशाला : ललिता देवी की पुरी में स्थित शालाओं में से एक ताम्रशाला के महत्त्व का कथन), वायु ९६.२३९/२.३४.२३९(ताम्रवक्षा : सत्यभामा व कृष्ण के पुत्रों में से एक ) । taamra
ताम्रचूड अग्नि ३४१.१६ (हस्ताभिनय के अन्तर्गत असंयुत हस्त के २४ भेदों में से एक), स्कन्द ५.२.२१.२७ (कुक्कुटों के राजा ताम्रचूड द्वारा कुक्कुट भक्षी विदूरथ - पुत्र कौशिक को शाप, तदनुसार कौशिक को रात्रि में कुक्कुट योनि की प्राप्ति, कुक्कुटेश्वर लिङ्गार्चन से शाप से मुक्ति का वृत्तान्त - ताम्रचूडोऽथ संक्रुद्धो ददौ शापं दुरात्मने ।।
कौशिकाय क्षयो रोगो भविष्यति भयावहः ।। ), भरतनाट्य ९.१२२(हस्त की ताम्रचूड मुद्रा का लक्षण - मध्यमाङ्गुष्ठसन्दंशो वक्रा चैव प्रदेशिनी । शेषे तलस्थे कर्तव्ये ताम्रचूलकरेऽङ्गुली ॥) । taamrachooda/ taamrachuuda/ tamrachuda
ताम्रपर्ण ब्रह्माण्ड २.३.७.३३७(पुष्पदन्त हस्ती के ताम्रपर्ण ? होने आदि का उल्लेख - पुष्पदन्तो बृहत्साम्नः षड्दन्तः पद्मपुच्छवान् । ताम्र पर्णश्च तत्पुत्राः संघचारिविषाणिनः ॥), मत्स्य ११४.८(भारत के ९ भेदों में से एक), विष्णु २.३.६(भारतवर्ष के ९ भेदों में से एक ) । taamraparna
ताम्रपर्णी गरुड १.६९.२३ (शुक्ति से उत्पन्न मोती के सैंहलिक आदि आठ आकरों में ताम्रपर्ण का उल्लेख), ब्रह्माण्ड १.२.१६.३६(मलय पर्वत से प्रसूत नदियों में से एक), २.३.१३.२४ (ताम्रपर्णी नदी के जल से शङ्ख, मुक्ता आदि की उत्पत्ति), २.३.७१.२४८(कृष्ण व सत्यभामा की पुत्रियों में से एक), ३.४.३३.५२ (इन्द्रनील शाला के अन्दर स्थित नदियों में से एक), भागवत ४.२८.३५(मलय पर्वत की ३ नदियों में से एक), ५.१९.१८(भारत की प्रमुख नदियों में से एक), मत्स्य ११४.३०(महेन्द्र पर्वत से प्रसूत नदियों में से एक), वायु ७७.२५ (ताम्रपर्णी नदी के जल से शङ्ख, मुक्ता आदि की उत्पत्ति), ९६.२४०/ २.३५.२४०(कृष्ण व सत्यभामा की पुत्रियों में से एक), विष्णु २.३.१३(मलय पर्वत से प्रसूत मुख्य नदियों में से एक), शिव १.१२.३३ (ताम्रपर्णी सङ्गम का संक्षिप्त माहात्म्य), स्कन्द २.४.२६.७ ( चोल राजा कृत यज्ञों से ताम्रपर्णी नदी के दोनों तटों के शोभायुक्त होने का उल्लेख ) ; द्र. भूगोल । taamraparnee/ tamraparni
ताम्रलिप्त ब्रह्माण्ड १.२.१८.५१(गङ्गा द्वारा प्लावित जनपदों में से एक), २.३.७४.१९७(कलियुग में देवरक्षित राजाओं द्वारा भोगे जाने वाले जनपदों में से एक), मत्स्य ११४.४५(प्राच्य जनपदों में से एक), १२१.५०(गङ्गा द्वारा प्लावित जनपदों में से एक), वायु ४५.१२३(प्राच्य जनपदों में से एक), ९९.३८५/२.३७.३७९(देवरक्षित राजाओं द्वारा भोगे जाने वाले जनपदों में से एक), विष्णु ४.२४.६४(देवरक्षितों द्वारा रक्षणीय प्रान्तों में से एक ) । taamralipta
ताम्रलिप्ति कथासरित् २.५.५४ (ताम्रलिप्ति नगरी निवासी गुहसेन व देवस्मिता की कथा), ७.२.३७ (ताम्रलिप्ति नगरी निवासी शीलवती नामक पतिव्रता पत्नी के कर स्पर्श से हाथी के जीवित हो जाने का कथन), ८.१.४२ (सूर्यप्रभ द्वारा ताम्रलिप्ति नगरी निवासी वीरभट नृप की कन्या मदनसेना के वरण का उल्लेख), १२.२.१२५ (ताम्रलिप्ति नगरी वासी धर्मसेन नामक वणिक् तथा तत्पत्नी विद्युल्लेखा का मरते समय राजहंस युगल के दर्शन से राजहंस युगल के रूप में जन्म लेने का कथन), १२.४.३ (ताम्रलिप्ति नगरी वासी राजा चण्डसेन तथा तद् राज्याश्रित सत्त्वशील की कथा), १२.१०.५१ (ताम्रलिप्ति नगरी वासी समुद्रदत्त नामक वणिक् - पुत्र का वसुदत्ता से विवाह तथा वसुदत्ता द्वारा पतिवंचना की कथा), १२.२६.७ (ताम्रलिप्ति नगरी वासी धनपाल वणिक् की पुत्री धनवती से उत्पन्न पुत्र चन्द्रप्रभ की कथा), १२.२८.७ (ताम्रलिप्ति निवासी वणिक् - पुत्र मणिवर्मा तथा अनङ्गमञ्जरी की कथा ) । taamralipti/ tamralipti
ताम्रवर्ण ब्रह्माण्ड १.२.१६.९(भारत के ९ वर्षों में से एक), वायु ३८.८(ताम्रवर्ण व पतङ्ग शैलों के बीच स्थित सरोवर का कथन), ४५.७९(भारत के ९ वर्षों में से एक), ४५.१०५(ताम्रवर्णा : मलय पर्वत से प्रसूत नदियों में से एक), ६९.२२१/२.८.२१५(पुष्पदन्त दिग्गज - पुत्र?) taamravarna
ताम्रा ब्रह्माण्ड २.३.३.५६(दक्ष - पुत्रियों में से एक, कश्यप - पत्नी), २.३.७.४४५ (ताम्रा सर्ग /वंश वर्णन), २.३.७.४४५(पुलह - पुत्री? ताम्रा से उत्पन्न पुत्रियों की प्रजा का वर्णन - षट्कन्यास्त्वभिविख्यातास्ताम्रायाश्च विजज्ञिरे ॥ गृध्री भासी शुकी क्रौञ्ची श्येनी च धृतराष्ट्रिका ।),२.३.७.४६८ (ताम्रा की घातशीला प्रकृति का उल्लेख - वाहशीला तु विनता ताम्रा वै घातशीलिनी ।), भागवत ६.६.२६(कश्यप - पत्नियों में से एक, श्येन, गृध्र आदि की माता - ताम्रायाः श्येनगृध्राद्या मुनेरप्सरसां गणाः।), मत्स्य ६.२(कश्यप की १३ पत्नियों में से एक), ६.३० (मारीच कश्यप व ताम्रा की शुकी आदि ६ कन्याओं के नाम - षट्कन्या जनयामास ताम्रा मारीचबीजतः। शुकी श्येनी च भासी च सुग्रीवी गृध्रिका शुचिः।।), ४६.१६ (आनकदुन्दुभि - भार्या, सहदेव – माता - सहदेवस्तु ताम्रायां जज्ञे शौरिकुलोद्वहः।), १७१.२९ (दक्ष प्रजापति की १२ कन्याओं में से एक, कश्यप - भार्या), १७१.६०(ताम्रा के पुण्या अप्सराओं की माता होने का उल्लेख - ताम्रा त्वप्सरसां माता पुण्यानां भारतोद्भव! ।।), वायु ६६.५४/२.५.५५(दक्ष - पुत्री, कश्यप - पत्नी), ६९.३२५/२.८.३१६(पुलह - पुत्री ताम्रा से उत्पन्न सर्ग का वर्णन : श्येनी, भासी, क्रौञ्ची, धृतराष्ट्री तथा शुकी की सृष्टि आदि - बह्वन्यास्त्वभिविख्यातास्ताम्रायाश्च विजज्ञिरे ॥
श्येनी भासी तथा क्रौञ्ची धृतराष्ट्री शुकी तथा।), विष्णु १.१५.१२५(काश्यप - भार्याओं में से एक), १.२१.१५ (कश्यप - भार्या, पुत्रियों के वंश का वर्णन ) । taamraa
ताम्राभ वायु ३६.२३(दक्षिण के पर्वतों में से एक), ३९.५४(ताम्राभ पर्वत पर काद्रवेय तक्षक के पुर होने का उल्लेख - ताम्राभे काद्रवेयस्य तक्षकस्य पुरोत्तमम् ।।) ।
तार पद्म ३.३१.१८३ (शाकुनि व रेवती के ९ पुत्रों में से एक), स्कन्द ३.१.४४.१९(तार के खर्वट से युद्ध का उल्लेख), वा.रामायण १.१७.११ (वानर, बृहस्पति का अंश), ६.५८.२३ (राक्षस - वानर युद्ध में तार नामक वानर द्वारा प्रहस्त - सचिव कुम्भहनु का वध), ७.३४.४ (वाली - मन्त्री ) ; द्र. सुतार । taara
तारक गणेश १.८३.६ (शिव के वरदान से अवध्य बने तारक के वध हेतु देवों के उद्योग का वर्णन), देवीभागवत ७.३१.९ (ब्रह्मा के वर के फलस्वरूप तारक नामक असुर की मात्र शिव - पुत्र द्वारा ही वध्यता का उल्लेख), पद्म १.४०- १.४२ (वज्राङ्ग व वराकी - पुत्र, देवों से युद्ध, तारक द्वारा देवों की पराजय), १.६९ (स्कन्द द्वारा तारक / तारेय का वध), ब्रह्म २.२.४ (तारक नामक असुर से त्रस्त देवों का विष्णु के समीप गमन, विष्णु सहित देवों की पुन: शिव से तारक के त्रास से उद्धार हेतु प्रार्थना), ब्रह्माण्ड १.१.५.३९(तारकादि ८ शक्तिवधों का कथन), १.२.२०.२६(तीसरे तल में तारक के भवन का उल्लेख), २.३.६.७(दनु के प्रधान पुत्रों में से एक), ३.४.११.७ (तारक दानव द्वारा देवों का पीडन, देवों द्वारा तारक वध हेतु उपाय), ३.४.३०.३९ (भण्डासुर - मित्र, कुमार द्वारा वध), ३.४.३०.१०३(गुह द्वारा तारक वध पर इन्द्र द्वारा स्वपुत्री देवसेना को गुह को प्रदान करने का कथन), भविष्य ३.३.१.२९ (कर्ण का अवतार), ३.३.१७.४ (कर्ण का अंश, पृथ्वीराज - पुत्र), ३.३.२६.९७ (कर्णांश, तारक द्वारा रणजित् का वध), ३.३.३१.६० (कितव दैत्य द्वारा तारक का हरण, सुखखानि द्वारा कितव का वध), ३.३.३२.२०६ (ब्रह्मानन्द रूप धारी वेला द्वारा तारक का वध), ४.६२.१ (उल्का नवमी का तारक - आर्ति नाशक रूप में उल्लेख), ४.६५ (तारक द्वादशी व्रत का माहात्म्य : कुशध्वज का ब्रह्महत्या के कारण क्षुद्र योनियों में जन्म, व्रत से मुक्ति), ४.९३.३ (तारक असुर द्वारा देवों का पीडन, देवों के पूछने पर ब्रह्मा द्वारा शिव - पुत्र द्वारा तारक के वध का कथन), मत्स्य ६.१९(दनु व कश्यप के प्रधान पुत्रों में से एक), ६१.४(अग्नि व वायु से सङ्ग्राम में पलायन करके समुद्र में छिपने वाले असुरों में से एक), १२८.३४, ५६(सूर्य की रश्मियों के तारक आदि होने का उल्लेख), १२९.५(मय के साथ तप करने वाले ३ दैत्यों में से एक), १३०.७ (तारक द्वारा त्रिपुर के लौहमय भाग की रक्षा का उल्लेख), १३१.२२(तारक की मय के पार्श्व में स्थिति का उल्लेख), १३६.३५ (त्रिपुर ध्वंस प्रकरण में नन्दि व तारक का युद्ध), १३६.६७(तारक द्वारा शिव के रथ के सारथी ब्रह्मा पर प्रहार का कथन), १३८.३५ (नन्दी द्वारा तारक का वध), १४६+ (वज्राङ्ग व वराङ्गी से तारक की उत्पत्ति, तप, ब्रह्मा से वर प्राप्ति, देवों से युद्ध, वध आदि), १५३.१५९ (तारक का देवगणों से युद्ध, तारक द्वारा देवों का बन्धन व मुक्ति), १६० (तारक का कुमार से युद्ध व मृत्यु), १७३.९ (तारक के रथ का वर्णन), लिङ्ग १.७१.८ (विद्युन्माली, तारकाक्ष व कमलाक्ष - पिता), वायु ५०.२६(तृतीय तल में तारक असुर के पुर का उल्लेख), ६८.७/२.७.७(दनु के प्रधान पुत्रों में से एक), ९१.९८/२.२९.९४ (कौशिक गोत्र के ऋषियों में से एक), १०८.३७/२.४६.४०(गया में तारक ब्रह्म के माहात्म्य का कथन), विष्णु १.२१.५(दनु के प्रधान पुत्रों में से एक), शिव २.३.१५+ ( वज्राङ्ग व वराकी - पुत्र, तारक उत्पत्ति के समय अनर्थ सूचक उत्पात, तारक के तप से देवों को भय प्राप्ति, ब्रह्मा से वर प्राप्ति के फलस्वरूप तारक की केवल शिव - पुत्र द्वारा वध्यता, भयत्रस्त देवों द्वारा तारक को स्व स्व ऐश्वर्य प्रदान करना, त्रस्त देवों का ब्रह्मा से स्वदुःख निवेदन, ब्रह्मा कृत सान्त्वना तथा तारक वध के उपाय का वर्णन), २.४.१+ (तारकासुर वध हेतु कुमार का जन्म, कुमार की अध्यक्षता में देवसेना का युद्धार्थ प्रस्थान, महीसागर सङ्गम पर देव- दानवों का युद्ध, वीरभद्र व हरि से तारक का युद्ध, ब्रह्मा की आज्ञा से कुमार का तारक से युद्ध, कुमार द्वारा तारक के वध का वर्णन), स्कन्द १.१.२० (नमुचि - पुत्र, वर प्राप्ति), १.१.२८ (तारक वध हेतु कार्तिकेय की उत्पत्ति, नारद द्वारा देवों की विजय तथा दैत्यों की पराजय रूप भविष्य का कथन), १.२.१५ (वज्राङ्ग व वराङ्गी - पुत्र, माता को इन्द्र द्वारा दिए गए त्रास का प्रतिशोध लेने के लिए तारक की उत्पत्ति), ३.३.२० (अमात्य - पुत्र, रुद्राक्ष में रुचि, पूर्वजन्म में वैश्या के आधीन कुक्कुट), ४.२.५३.१९ (तारकेश्वर लिङ्ग की महिमा), ४.२.५३.२१ (काशी में तारकेश्वर लिङ्ग की स्थापना व संक्षिप्त माहात्म्य), ४.२.६९.१५३ (तारकेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.१.१८.९ (तारक नामक दैत्येन्द्र द्वारा देवों को त्रास, तारक वधार्थ शिव - पुत्र की उत्पत्ति), ६.७० (हिरण्यकशिपु- पुत्र, तारक वधार्थ स्कन्द के जन्म की कथा), ७.१.१२५.६ (शिव - सुत षण्मुख द्वारा तारक - वध का कथन), हरिवंश १.२५.३५ (बृहस्पति - भार्या तारा का चन्द्रमा द्वारा बलात् अपहरण होने पर देव - दानव संग्राम की तारकामय संग्राम नाम से प्रसिद्धि), १.४२ (तारकामय संग्राम के अन्तर्गत देव – दानवों का युद्ध, दानवों का नाश, विष्णु द्वारा देवों को अभय प्रदान का वर्णन), लक्ष्मीनारायण १.९९ (तारक का कार्तिकेय से युद्ध व मृत्यु), १.१०० (वज्राङ्ग व वराङ्गी से तारक की उत्पत्ति, तप), १.३०५.२५(पुत्र व ज्ञान की तारक संज्ञा), २.८०.२० ( तारकायन नामक महर्षि द्वारा भागवती राजा बलेशवर्मा को ईश्वर दर्शन हेतु ईश मन्त्र प्रदान करना), ३.१६४.७२ (१२वें रुद्रसावर्णि मन्वन्तर में तारक नामक असुर के वध हेतु श्रीहरि द्वारा नपुंसक अवतार ग्रहण करना), ३.२३१ (तारकादर्श नामक शूलीप्रद / जल्लाद की श्रीहरि भक्ति से अभ्युदय व मोक्ष की कथा), ४.१०१.८७ (श्रीकृष्ण - पत्नी गङ्गा के युगलापत्य में पुत्र का नाम ) । taaraka/ taraka
तारका देवीभागवत १२.६.७१ (गायत्री सहस्रनामों में से एक ) ।
तारकाक्ष शिव २.५.१.८ (तारकासुर के तीन पुत्रों में से ज्योष्ठ पुत्र, मय द्वारा तारकाक्ष हेतु स्वर्णमय नगर का निर्माण ) ।
तारकामय ब्रह्माण्ड २.३.५.३२(तारकामय सङ्ग्राम में हिरण्याक्ष - पुत्रों के हत होने का कथन), भागवत ९.१४.४(तारा हरण के कारण घटित तारकामय सङ्ग्राम का वृत्तान्त), मत्स्य ४७.४३(१२ देवासुर सङ्ग्रामों में पञ्चम), १२९.१६ (तारकामय सङ्ग्राम में हत, ताडित असुरों द्वारा सुरक्षा हेतु त्रिपुर दुर्ग बनाना), १७२.१०(तारकामय सङ्ग्राम में देवों के हारने पर विष्णु द्वारा दैत्यों के नाश का वर्णन), वायु ६७.६९/२.६.६९(हिरण्याक्ष - पुत्रों के तारकामय सङ्ग्राम में हत होने का उल्लेख), ७०.८१/२.९.८१(तारकामय सङ्ग्राम में लोक के अनावृष्टि से हत होने पर वसिष्ठ द्वारा तप से प्रजा को धारण करने का कथन), ९०.३३/ २.२८.३३(चन्द्रमा द्वारा तारा हरण के कारण देव - दानव तारका मय सङ्ग्राम का कथन), विष्णु ४.६.१६(तारा हरण के कारण तारकासुर सङ्ग्राम का कथन ) । taarakaamaya