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Puraanic contexts of words like Taksha / carpenter, Takshaka, Takshashilaa, Tattva / fact / element etc. are given here.

त वायु १०४.७२/२.४२.७२(वेदों के वाम पादों के त वर्ग से निर्मित होने का उल्लेख ) ।

 

तंसु ब्रह्म १.११.५३(ब्रह्मवादिनी इला - पति, धर्मनेत्र - पिता, पुरु वंश ) ।

 

तक्ष गरुड १.१९७.१३(आग्नेय में कुलिक, तक्ष व महाब्ज की स्थिति का उल्लेख), देवीभागवत ६.२.११(इन्द्र द्वारा तक्ष को मृत त्रिशिरा मुनि के शिर छेदन का आदेश, तक्ष के मना करने पर इन्द्र द्वारा यज्ञों में भाग प्राप्ति का प्रलोभन, तक्ष द्वारा शिर छेदन का वर्णन), ब्रह्माण्ड २.३.६३.१९०(भरत - पुत्र, तक्षशिला नगरी का स्वामी), भागवत ९.२४.४३(वृक व दुर्वाक्षी के पुत्रों में से एक, विदर्भ वंश), वायु ८८.१८९/२.२६.१८९(भरत - पुत्र तक्ष की तक्षशिला पुरी का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर १.२६१.७(तक्ष के वीरबाहु से युद्ध का उल्लेख), वा.रामायण ७.१०१.११(भरत द्वारा स्व - पुत्र तक्ष को तक्षशिला का राजा बनाने का उल्लेख ) । taksha

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तक्षक अग्नि ५१.१३(प्रतिमा लक्षण के अन्तर्गत अनन्त, तक्षक प्रभृति प्रमुख नागगणों के सूत्रधारी व फणवक्त्र होने का उल्लेख - अनन्तस्तक्षकः कर्क्कः पद्मो महाब्जः शङ्खकः। कुलिकः सूत्रिणः सर्वे फणवक्त्रा महाप्रभाः ।।), गरुड १.१९७.१२(आग्नेये चापि कुलिकस्तक्षश्चैव महाब्जकौ । वायुमण्डलसंस्थौ च पञ्च भूतानि विन्यसेत् ॥), देवीभागवत २.१०(तक्षक नाग द्वारा कृमि रूप होकर परीक्षित् के दंशन का प्रसंग), २.११.५४(जनमेजय के सर्पसत्र से भयभीत तक्षक नाग का इन्द्र की शरण में गमन, आस्तीक मुनि की प्रार्थना पर जनमेजय के सर्पसत्र से विराम का कथन - तमिन्द्रशरणं ज्ञात्वा मुनिर्दत्ताभयं तथा ॥ उत्तङ्कोऽह्वयदुद्विग्नः सेन्द्रं कृत्वा निमन्त्रणम् ।), पद्म १.३४.१५५(कुंडवाप्यां शुभांगस्तु सारण्यां तक्षकस्तथा।) ३.२५.२(तक्षक नाग के भवन की वितस्ता नाम से प्रसिद्धि, संक्षिप्त माहात्म्य - काश्मीरेष्वेव नागस्य भवनं तक्षकस्य च । वितस्ताख्यमिति ख्यातं सर्वपापप्रमोचनम्॥),  ब्रह्मवैवर्त्त ४.५१.५(धन्वन्तरि - शिष्य दम्भी द्वारा मन्त्र बल से तक्षक नाग का जृम्भन, मणि का हरण, तक्षक की निश्चेष्टता का कथन - दम्भी धन्वन्तरेः शिष्यो धृत्वा तक्षकमुल्बणम् ।। मंत्रेण जृंभितं कृत्वा निर्विषं तं चकार ह ।। ..), ब्रह्माण्ड १.२.१७.३४(तक्षक आदि सब नागों के निषध पर निवास का उल्लेख), १.२.२०.२४(सुतल नामक द्वितीय तल में तक्षक नाग के पुर की स्थिति का उल्लेख), १.२.२५.८८(शिव के कण्ठ में स्थित विष के तक्षक नाग की भांति दृष्टिगोचर होने का उल्लेख - तं दृष्ट्वोत्पलपत्राभं कंठसक्तमिवोरगम् ।। तक्षकं नागराजानं लेलिहानमिवोत्थितम् ।।), २.३.७.३२(कद्रू व कश्यप के प्रधान नाग पुत्रों में से एक), भविष्य १.३४.२२(तक्षक नाग का भूमिपुत्र/मङ्गल ग्रह से तादात्म्य - अनन्तं भास्करं विद्यात्सोमं विद्यात्तु वासुकिम् । तक्षकं भूमिपुत्रं तु कर्कोटं च बुधं विदुः । ।), १.३६.४७(अनंतस्य दिशा पूर्वा वासुकेस्तु हुताशनी ।। दक्षिणा तक्षकस्योक्ता कर्कोटस्य तु नैर्ऋती ।।),  ३.३.३१.९७(पुण्ड्र देशीय नागवर्मा का अपर नाम?, नागवती - पति, सुवेला – पिता - पुंड्रदेशे महाराजो नागवर्मा महाबलः ।। बभूव तक्षकपरो धर्मवाञ्जगतीतले ।।..), ४.३४(विष्णु देह में सर्पों का न्यास - अनंतायेति पादौ तु धृतराष्ट्राय वै कटिम् ।। उदरं तक्षकायेति उरः कर्कोटकाय च ।।..), ४.९४.३(अनन्त का पर्याय तक्षक, शेष - कृष्ण कोऽयं त्वयाख्यातो ह्यनंत इति विश्रुतः ।। किं शेषनाग आहोस्विदनंतस्तक्षकः स्मृतः ।।),  भागवत ४.१८.२२(सर्पों, नागों द्वारा तक्षक को वत्स बनाकर बिलपात्र में विष रूप दुग्ध के दोहन का उल्लेख - तथाहयो दन्दशूकाः सर्पा नागाश्च तक्षकम् । विधाय वत्सं दुदुहुः बिलपात्रे विषं पयः ॥ ), ५.२४.२९(महातल में तक्षक आदि क्रोधवश गण के नागों के निवास का उल्लेख), ९.१२.८(प्रसेनजित् - पुत्र, बृहद्बल - पिता, इक्ष्वाकु/कुश वंश - ततः प्रसेनजित् तस्मात् तक्षको भविता पुनः ।  ततो बृहद्‍बलो यस्तु पित्रा ते समरे हतः ॥), १२.६(परीक्षित के दंशन का प्रसंग, जनमेजय के सर्पसत्र में शक्र द्वारा तक्षक की रक्षा - तं गोपायति राजेन्द्र शक्रः शरणमागतम्। तेन संस्तम्भितः सर्पस्तस्मान्नाग्नौ पतत्यसौ॥), मत्स्य ६.३९(कद्रू व कश्यप के प्रधान नाग पुत्रों में से एक), ८.७(वासुकि के नागाधिप व तक्षक के सर्पाधिप बनने का उल्लेख - नागाधिपं वासुकिमुग्रवीर्यं सर्पाधिपं तक्षकमादिदेश।), १०.१९(नागों द्वारा पृथिवी दोहन में नागराज तक्षक के वत्स बनने का उल्लेख - अलावुपात्रं नागानां तक्षको वत्सकोऽभवत्।। विषं क्षीरं ततो दोग्धा धृतराष्ट्रोऽभवत्पुनः।), ४९.६(घृताची के पुत्र औचेयु की भार्या ज्वलना के तक्षक - कन्या होने का उल्लेख - औचेयोर्ज्वलना नाम भार्या वै तक्षकात्मजा।। तस्यां स जनयामास रन्तिनारं महीपतिम्।), ५०.२३(तक्षक के पुर के द्वितीय तल में होने का उल्लेख), ५४.९१(विषपान से शिव का कण्ठ तक्षक नाग की भांति होने का उल्लेख), १५४.४४४(शिव द्वारा वासुकि व तक्षक को कर्णाभूषण बनाने का उल्लेख - विहायोदग्रसर्पेन्द्र कटकेन स्वपाणिना। कर्णोत्तंसञ्चकारेशो वासुकिन्तक्षकं स्वयम् ।।), लिङ्ग १.५०.१५(तक्षक पर्वत पर ब्रह्मा, विष्णु आदि के वास का उल्लेख - तक्षके चैव शैलेन्द्रे चत्वार्यायतनानि च।। ब्रह्मेन्द्रविष्णुरुद्राणां गुहस्य च महात्मनः।।), वराह २४.६(तक्षक का कम्बल से साम्य? - अनन्तं वासुकिं चैव कम्बलं च महाबलम् । कर्कोटकं च राजेन्द्र पद्मं चान्यं सरीसृपम् ।। ), वामन ४६.८(स्थाणु वट के उत्तर पार्श्व में तक्षक महात्मा द्वारा सर्वकामप्रद महालिङ्ग की स्थापना का उल्लेख - वटस्य उत्तरे पार्श्वे तक्षकेण महात्मना । प्रतिष्ठितं महालिङ्गं सर्वकामप्रदायकम्॥), वायु ३९.५४(ताम्राभ पर्वत पर तक्षक के पुर की स्थिति का उल्लेख - ताम्राभे काद्रवेयस्य तक्षकस्य पुरोत्तमम् ।।), ६९.३२४/२.८.३१५(सुरसा द्वारा उत्पन्न एक सौ शिरोमृत सर्पों में तक्षक का सर्पराज रूप में उल्लेख - सर्पाणां तक्षको राजा नागानाञ्चापि वासुकिः ।), ९९.१२८/ २.३७.१२४(तक्षक - पुत्री ज्वलना के रिवेयु की भार्या होने का उल्लेख), विष्णु १.२१.८१(कद्रू के प्रधान नाग पुत्रों में से एक), शिव ५.३९.३१(प्रसेनजित - पुत्र, बृहद्बल - पिता, इक्ष्वाकु वंश - विश्वसाह्वस्सुतस्तस्य तत्सुतोऽ भूत्प्रसेनजित् ।। तक्षकस्तस्य तनयस्तत्सुतो हि बृहद्बलः ।। ), स्कन्द १.२.१३.१९२(शतरुद्रिय प्रसंग में तक्षक द्वारा कालकूट लिङ्ग की पूजा - तक्षकः कालकूटाख्यं बहुरूपेति नाम च॥ हालाहलं च कर्कोट एकाक्ष इति नाम च॥ ), १.२.६३.६३(शेष द्वारा प्रतिष्ठित लिङ्ग के परितः नागों द्वारा चार मार्गों का निर्माण ; तक्षक द्वारा उत्तर दिशा के मार्ग का निर्माण ; बर्बरीक विजय प्रसंग - उत्तरेण च मार्गोयं येन यातुं भवान्स्थितः।।.. विहितस्तक्षकेणासौ यातुं तत्र महात्मना ।।), २.१.११.१५(राजा परीक्षित् द्वारा समाधिनिष्ठ शमीक ऋषि के स्कन्ध पर मृत सर्प का स्थापन, ऋषि - पुत्र शृङ्गी द्वारा राजा को तक्षक अहि द्वारा दंशन का शाप, कृमि रूप तक्षक द्वारा राजा के दंशन तथा मरण का वृत्तान्त - मत्ताते शवसर्पं यो न्यस्तवान्मूढचेतनः ।। स सप्तरात्रान्म्रियतां संदष्टस्तक्षकाहिना ।।), ३.१.४१.१५(वही), ३.३.८.६४(राजकुमार चन्द्राङ्गद का यमुना में निमज्जन,  पाताल में पन्नग - स्त्रियों के साथ तक्षक के पुर में प्रवेश, तक्षक द्वारा राजकुमार का सत्कार, परस्पर वार्तालाप, तक्षक द्वारा रक्षकादि के साथ चन्द्राङ्गद के भूर्लोक पर प्रेषण का वर्णन - तत्रापश्यत्सभा मध्ये निषण्णं रत्नविष्टरे ।। तक्षकं पन्नगाधीशं फणानेकशतोज्ज्वलम् ।।), ४.१.४१.११०(नित्य सोम कला से शरीर के पूर्ण होने पर तक्षक के विष का भी प्रभाव न होने का उल्लेख - नित्यं सोमकलापूर्णं शरीरं यस्य योगिनः ।। तक्षकेणापि दष्टस्य विषं तस्य न सर्पति।।), ४.२.६६.११(तक्षकेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य - तत्कुण्डात्पश्चिमे भागे लिंगं वै तक्षकेश्वरम्।। पूजनीयं प्रयत्नेन भक्तानां सर्वसिद्धिदम् ।।), ६.११६.४०(तक्षक नाग का जन्मान्तर में द्विजशाप वश रैवत राजा बनना, रैवत व क्षेमङ्करी से रेवती के जन्म का कथन - तक्षकाख्यस्तथा नागो द्विजशाप वशाच्छुभे ॥ सौराष्ट्रविषये राजा रैवताख्यो भविष्यति ॥), ६.११७.७(तक्षक व वासुकि नाग का द्विज रूप धारण करके भट्टिका नामक ब्राह्मणी का गीत सुनने के लिए पाताल से पृथ्वी पर आगमन, तक्षक की भट्टिका पर कामासक्ति, भट्टिका का हरण, भट्टिका द्वारा तक्षक को मनुष्य योनि प्राप्ति का शाप, तक्षक का शापवश रैवत राजा बनने का वृत्तान्त), ७.१.१०७.१०१( शाल्मलि तीर्थ में ब्रह्मा का नाम - पूर्णगिर्यां सुभोगश्च शाल्मल्यां तक्षकस्तथा ॥), ७.३.२.३८(उत्तङ्क द्वारा कृष्णाजिन में बद्ध कुण्डलों का तक्षक नाग द्वारा हरण, अश्वरूप अग्नि के साहाय्य से कुण्डलों की पुन: प्राप्ति, गुरु - पुत्नी को प्रदान करने का वृत्तान्त - एतस्मिन्नेव काले तु तक्षकः पन्नगोत्तमः ॥ गृहीत्वा कुण्डले तूर्णमगमद्दक्षिणामुखः ॥), ७.४.१७.११(कृष्ण मन्दिर के पूर्व द्वार के पालकों में नागराज तक्षक का उल्लेख - तरुणार्कश्च वै सूर्यो देव्यो वै सहमातरः ॥ ईश्वरश्चापि दुर्वासा नागराजस्तु तक्षकः ॥), लक्ष्मीनारायण १.४९९.११(तक्षक सर्प के सौराष्ट्र में रैवत राजा होने का उल्लेख - किन्तु सर्पस्तक्षको वै सौराष्ट्रे रैवतो नृपः । आनर्तविषये भावी तस्य क्षेमंकरी प्रिया ।। ), २.२८.१६(तक्षक जाति के नागों का नागर बनना - वासुकेर्जातिमन्तश्च मन्त्रिणस्ते भवन्ति च । तक्षकस्य च जातीया राजमान्या हि नागराः ।।), ३.१४२.११(तक्षक सर्प का मङ्गल ग्रह से सम्बन्ध, सम्बन्धित ग्रह में सर्पदंश से मृत्यु का कथन - शेषोऽर्कः फणिपश्चन्द्रस्तक्षको भौम ईरितः ।। ), महाभारत आदि ३.१४०(उत्तङ्क द्वारा तक्षक की स्तुति - अहमैरावतज्येष्ठभ्रातृभ्योऽकरवं नमः। यस्य वासः कुरुक्षेत्रे खाण्डवे चाभवत्पुरा।। ), तक्षक-एक श्रेष्ठ नाग, जो कश्यप द्वारा कद्रू के गर्भ से उत्पन्न हुआ ( आदि० ३५ । ५)। इसके द्वारा क्षपणक का रूप धारण करके उत्तङ्क मुनि के कुण्डलों का अपहरण (आदि० ३ । १२७; आश्व० ५८ । २५-२६ )। राजा परीक्षित् को डसने के लिये जाते हुए इसकी मार्ग में काश्यप नामक ब्राह्मण से भेंट और धन देकर इसका उन्हें लौटा देना - तक्षकः पन्नगश्रेष्ठो नेष्यते यमसादनम्। तं दष्टं पन्नगेन्द्रेण करिष्येऽहमपज्वरम्। ( आदि० ४२ । ३६ से ४३ । २०); तमब्रवीत्पन्नगेन्द्रः काश्यपं त्वरितं द्विजम्। क्व भवांस्त्वरितो याति किं च कार्यं चिकीर्षति।।(आदि० ५० । १८-२७ ) । तपस्वी नागों द्वारा फल आदि भेजकर उस फल के साथ ही इसका छलपूर्वक परीक्षित् के पास पहुँचना और उन्हें डंस लेना ( आदि० ४३ । २२-३६, आदि० ५०।२९)। इसका इन्द्र की शरण में जाना और इन्द्र द्वारा इसे आश्वासन प्राप्त होना - तमिन्द्रः प्राह सुप्रीतो न तवास्तीह तक्षक। भयं नागेन्द्र तस्माद्वै सर्पसत्रात्कदाचन।। (आदि० ५३ । १४-१७)। आस्तीक की कृपा से जनमेजय के यज्ञ में इसकी रक्षा (आदि० ५८ । ३-७)। यह इन्द्र का मित्र था और सपरिवार खाण्डववन में रहता था; अतः इसी के लिये इन्द्र सदा खाण्डववन की रक्षा करते थे। उनके जल बरसा देने के कारण अग्नि उस वन को जला नहीं पाती थी - वसत्यत्र सखा तस्य तक्षकः पन्नगः सदा। सगणस्तत्कृते दावं परिरक्षति वज्रभृत्।। ( आदि० २२२ । ७) । खाण्डववनदाह के अवसर पर इसका कुरुक्षेत्र में निवास और अर्जुन द्वारा इसकी पत्नी का वध - न शशाक स निर्गन्तुं निरुद्धोऽर्जुनपत्रिभिः। मोक्षयामास तं माता निगीर्य भुजगात्मजा। ( आदि० २२६ । ४-८)। तक्षक-पुत्र अश्वसेन की खाण्डवदाह से माता द्वारा रक्षा - तस्य पूर्वं शिरो ग्रस्तं पुच्छमस्य निगीर्यते। निगीर्य सोर्ध्वमक्रामत्सुतं नागी मुमुक्षया।।),  यह वरुण की सभा का सदस्य है ( सभा० ९ । ८)। नागों द्वारा पृथ्वी-दोहन के समय यह बछड़ा बना था - अलाबुपात्रे च तथा विषं दुग्धा वसुन्धरा। धृतराष्ट्रोऽभवद्दोग्धा तेषां वत्सस्तु तक्षकः।। (द्रोण ६९ । २२ )। बलरामजी के शेषरूप से अपने लोक में पधारते समय यह प्रभासक्षेत्र के समुद्र में उनके स्वागत के लिये आया था ( मौसल० ४ । १५)।

। takshaka

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तक्षशिला ब्रह्माण्ड २.३.६३.१९१(भरत - पुत्र तक्ष की पुरी तक्षशिला का उल्लेख), वा.रामायण ७.१०१.११(गन्धर्व देश में तक्षशिला नामक नगरी का निर्माण कर भरत द्वारा तक्ष को राजा बनाने का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण ३.२२१(तक्षशिला - निवासी शिवजय नामक प्रासादकार की वृषपर्व ऋषि के योग से मोक्ष प्राप्ति की कथा), कथासरित् ६.१.१०(तक्षशिला - निवासी राजा कलिङ्गदत्त द्वारा वैश्यपुत्र को आत्मतत्त्व तथा मोक्षोपदेश का वर्णन), ६.२.१(तक्षशिला - निवासी राजा कलिङ्गदत्त की रानी तारादत्ता से कन्या - जन्म का कथन), ६.३.६३(कलिङ्गदत्त की कन्या कलिङ्गसेना द्वारा स्वयंप्रभा - प्रदत्त फलों का भक्षण, सखी सोमप्रभा के साथ उद्यान भ्रमण के पश्चात् तक्षशिला आगमन का कथन), ६.५.५५(तक्षशिला - पति कलिङ्गदत्त की कन्या कलिङ्गसेना द्वारा वत्सराज से प्रणय निवेदन का कथन), १२.२.७७(तक्षशिला - भूपति भद्राक्ष के पुत्र पुष्कराक्ष की कथा ) । takshashilaa

 

तक्षा महाभारत अनुशासन ४८.१३(तक्षा की उत्पत्ति का कथन), कथासरित् ७.९.२२(काञ्ची नगरी - वासी प्राणधर तथा राज्यधर नामक तक्षा/बढई भ्राताओं की कथा), ७.९.२२१(प्राणधर नामक तक्षा के कुशल यन्त्र विमान - निर्माता होने का उल्लेख), १०.६.१०४(भार्या की झूठी सान्त्वना से मूर्ख तक्षा/बढई के प्रसन्न होने की कथा ) । takshaa

 

तगर नारद १.६७.६२(तगर को रवि को अर्पण का निषेध), १.९०.७०(तगर द्वारा देवी पूजा से पशु सिद्धि का उल्लेख )

 

तडाग नारद १.१२.५४(तडाग निर्माण का फल, राजा वीरभद्र व मन्त्री बुद्धिसागर का दृष्टान्त), पद्म १.२७(तटाक : तटाक - प्रतिष्ठा विधि का वर्णन), ६.३८.२५(कूप आदि में स्नान की अपेक्षा तडाग में स्नान के उत्तम होने का उल्लेख), ब्रह्मवैवर्त्त २.९.११(तडाग तोडकर मार्ग निर्माण अथवा कृषिकर्म से नरकवास का उल्लेख), २.९.१७(तडाग से पङ्क उत्सारण पर ब्रह्मलोक में वास का उल्लेख), मत्स्य ५८(तडाग प्रतिष्ठा विधि का वर्णन ) । tadaaga

 

तडित् पद्म ५.७२.७७(तडित्प्रभा : कृष्ण - पत्नी), स्कन्द १.२.६२.३०(तडिद्रुचि : क्षेत्रपालों के ६४ प्रकारों में से एक ) । tadit

 

तण्डी लिङ्ग १.६५.४६(त्रिधन्वा - गुरु तण्डी - कथित रुद्र सहस्रनाम का वर्णन), स्कन्द ७.१.३३९.२(कूप में पतित मृग की हुंकार द्वारा शुष्क कूप का जल से पूरित होना, कूप जल में स्नान तथा पितृ तर्पणादि से तण्डी ऋषि को मुक्ति प्राप्ति का वर्णन ) । tandee/tandi

 

तण्डुल स्कन्द १.२.४४.७३(तण्डुल द्वारा दिव्यता परीक्षा), कथासरित् १०.७.१८१(मूर्ख द्वारा तण्डुल भक्षण की कथा ) । tandula

 

तति ब्रह्माण्ड १.२.३५.१२३(ततज : २८ वेदव्यासों में से एक), ३.४.३५.९४ (ततिकामिका : श्रीहरि की कलाओं में से एक ) ।

 

तत्त्व अग्नि ८६.२(विद्या विशोधन विधान के अन्तर्गत राग, शुद्धविद्या आदि ७ तत्त्वों के नाम), ८९(एक तत्त्व दीक्षा विधि का वर्णन), कूर्म २.७.२१(मन, बुद्धि, श्रोत्र, त्वक् आदि २४ तत्त्वों का कथन), नारद १.४२.२९(पृथिवी, जल, अग्नि आदि के अन्तों का कथन), १.४२.७५(शरीर में पृथिवी, जल, वायु, आप: व आकाश से उत्पन्न अवयवों का कथन), पद्म ६.२२६.२५(क, च, ट वर्ग आदि के रूप में २५ तत्त्वों का कथन), ब्रह्माण्ड १.२.२०.११(तत्त्वल : प्रथम तल का नाम), २.३.१९.६४(२४ तत्त्व पारग के ही वास्तविक पारग होने का उल्लेख), ३.४.८.३३ (मदन कृत प्रवृत्ति से मुक्ति हेतु २६ तत्त्वों के मन्थन के रहस्य का कथन), भागवत २.५.२२(कर्म से महत् आदि तत्त्वों के क्रमिक जन्म का वर्णन), ३.२१.३२(देवहूति - पुत्र कपिल द्वारा तत्त्वसंहिता/सांख्य शास्त्र की रचना का उल्लेख), ३.२६(महदादि भिन्न - भिन्न तत्त्वों की उत्पत्ति का वर्णन), ३.२६.११ (२४ तत्त्वों की गणना), ११.२२(तत्त्वों की संख्या के विषय में मतभेद, उद्ध~व - कृष्ण संवाद), मत्स्य ३.२९(सांख्य दृष्टि से २६ तत्त्वात्मक शरीर का वर्णन), १२३.४९(आप: के भूमि से १० गुना, अग्नि के आप: से १० गुना, वायु के अग्नि से १० गुना, आकाश के वायु से १० गुना होने आदि का कथन, एक तत्त्व द्वारा दूसरे को धारण करना),  योगवासिष्ठ २.१२.२०(आत्मतत्त्व के ज्ञान से जगत् - भ्रमण के रमणीय होने का कथन), लिङ्ग २.२४.४(पृथ्वी आदि पञ्च तत्त्वों की शुद्धि विधि), विष्णु १.२.३४(चौबीस तत्त्वों से जगत् की सृष्टि का वर्णन), शिव २.१.६.२ (ब्रह्मा द्वारा नारद को शिव तत्त्व का वर्णन), २.१.६.५८(प्रकृति से २४ तत्त्वों के प्रादुर्भाव का कथन), ६.१७(सात्विकादि गुणों से बुद्धि, बुद्धि से अहंकार, अहंकार से उनसे आगे अन्य तत्त्वों का वर्णन), ७.१.२९(समस्त पुरुषों में तत्त्वों के कलाओं द्वारा व्याप्त होने का कथन ; मन्त्राध्वा आदि क्रमिक अध्वों में तत्त्वाध्वा का कथन), ७.२.५.१९(२३ तत्त्वों की व्यक्त संज्ञा का उल्लेख), ७.२.१५.३६(तत्त्वविद् की प्रशंसा), स्कन्द २.७.१९.१९(तत्त्वाभिमानी देवों की आपेक्षिक श्रेष्ठता का कथन; भूतों - मनुष्यों व सप्तर्षियों के बीच स्थिति),   ३.१.४९.८३(मरुतों द्वारा तत्त्वों में परतत्त्व का अन्वेषण), ६.२७०.७(पाप - पिण्ड प्रदान विधि के अन्तर्गत पाप पिण्ड की पृथिवी आदि २४ तत्त्वों के नामों से पूजा), ७.१.९.५३(ब्रह्मा, विष्णु, शिव के २४, २५, २६ तत्त्वात्मक होने का उल्लेख),  ७.२.१८.१२(२४ तत्त्वों का कथन), महाभारत शान्ति ३०६.४०(२४ तत्त्वों से युक्त प्रकृति व परमपुरुष रूप २५वें तत्त्व का विचार), ३०८.६(२६वें तत्त्व परमात्मा द्वारा पञ्चविंश पुरुष व चतुर्विंश प्रकृति को जानने का कथन), ३१०.१२(अव्यक्त आदि ८ प्रकृतियों व श्रोत्र, त्वक् आदि १६ विकारों का कथन), ३१८.७०-७२(२५वें व २६वें तत्त्वों को देखने अथवा न देखने का विचार), ३३९.४३(भगवान वासुदेव के निष्क्रिय २५वां तत्त्व होने का कथन), लक्ष्मीनारायण १.१३९.४४(२४ तत्त्वों में २५वें स्व रूपी आत्मा की खोज करके २६वें परमेश्वर को समर्पित करने का उल्लेख ) । tattva/ tatva

 

तत्त्वदर्शी ब्रह्माण्ड ३.४.१.१०२(पौलह तत्त्वदर्शी : १३वें रौच्य मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक), भागवत ८.१३.३१(तत्त्वदर्श : १३वें मनु देवसावर्णि मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक), मत्स्य ९.२१(रैवत मनु के १० पुत्रों में से एक), २१.३(ब्रह्मदत्त के प्रसंग में सुदरिद्र ब्राह्मण के ७ पुत्रों में से एक), विष्णु ३.२.४०(१३वें मनु देवसावर्णि मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक ) । tattvadarshee/ tattvadarshi

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