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Puraanic contexts of words like Tishya, Teertha / holy place, Tungabhadra etc. are given here.

तिलोदक स्कन्द २.८.५ (तिलोदकी नदी का सरयू से सङ्गम व माहात्म्य), ५.३.२२२ (तिलोदेश्वर तीर्थ का माहात्म्य : जाबालि द्वारा तिल प्राशन से शुद्धि प्राप्ति ) ।

 

तिष्य ब्रह्माण्ड १.२.१६.६९(भारत के कृत आदि ४ युगों में से एक), १.२.३१.३०(तिष्य युग में धर्म की स्थिति का कथन), भागवत १२.२.२४ (सत्ययुग के आरम्भ के समय चन्द्रमा, सूर्य व तिष्य बृहस्पति के एकराशि में प्रवेश का उल्लेख), वायु ५८.३०(तिष्य/कलियुग में धर्म की दुर्दशा का वर्णन), ८२.५/२.२०.५(तुष्टिकामी के लिए तिष्य नक्षत्र में श्राद्ध का निर्देश), विष्णु २.४.५३ (क्रौञ्च द्वीप में शूद्र जाति की तिष्य संज्ञा), लक्ष्मीनारायण ३.३६.७१ (नारद नामक ५०वें वत्सर में भूमि पर तिष्य / कलियुग होने पर धर्म की स्थापना हेतु श्रीनाथ नारायण व धेनुमती श्री के प्राकट्य का वर्णन ) । tishya

 

तीक्ष्ण ब्रह्माण्ड ३.४.२५.२९, ९८ (तीक्ष्णशृङ्ग : ललिता देवी के बन्धन हेतु भण्डासुर द्वारा प्रेषित सेनानियों में से एक , सर्वमङ्गलिका नित्या देवी द्वारा तीक्ष्णशृङ्ग के वध का उल्लेख), ३.४.३५.९४(तीक्ष्णा : शिव की ११ कलाओं में से एक), स्कन्द १.१.१७.१३९ (इन्द्र - वृत्रासुर युद्ध में अग्नि के तीक्ष्णकोप से युद्ध का उल्लेख ) ; द्र. सुतीक्ष्ण । teekshna

 

तीराण लक्ष्मीनारायण २.१७९.११२ (वल्गुराय प्रदेशों का राजा), २.१८० (श्रीहरि का तीराण नृप की राजधानी में गमन, भ्रमण तथा पूजनादि का वर्णन ) ।

 

तीर्थ अग्नि १०९ (तीर्थों के नाम व संक्षिप्त माहात्म्य), ३०५ (तीर्थ अनुसार विष्णु के ५५ नाम), कूर्म १.३५/१.३३ (व्यास द्वारा तीर्थ यात्रा, तीर्थों के नामों का कथन), १.३४+ (प्रयाग तथा तदन्तर्गत तीर्थों का माहात्म्य), २.३५+ (विभिन्न तीर्थों के माहात्म्य का वर्णन), २.४४/२.४२ (विविध तीर्थों का माहात्म्य), गरुड १.८१ (तीर्थों के नाम व माहात्म्य), १.८१.२३ (ब्रह्म ध्यान, इन्द्रिय - निग्रह, दम तथा भाव शुद्धि नामक आध्यात्मिक तीर्थों में स्नान से परम गति की प्राप्ति), १.१०९.५४ (अर्थ से भ्रष्ट पुरुष हेतु तीर्थ यात्रा का निर्देश), २.३८.१२/२.२८.१२ (मानस तीर्थ में स्नान से पापों से अलिप्तता का उल्लेख), नारद २.६२ (तीर्थ यात्रा के माहात्म्य तथा विधि का वर्णन), पद्म १.९ (श्राद्ध योग्य तीर्थ), १.३४.१३१ (तीर्थों में ब्रह्मा के नाम), २.९०.११ (इन्द्र के आह्वान पर समस्त तीर्थों का आगमन तथा प्रयागादि चार महा तीर्थों की श्रेष्ठता का कथन), ३.१०+ (दिलीप का वसिष्ठ से तीर्थ विषयक संवाद), ६.१३३ (जम्बू द्वीप में तीर्थों के नाम), ब्रह्म १.२३/२५.८ (तीर्थों के नाम), २.१.१६ (स्वर्ग, मर्त्य व रसातल में दैव, आसुर, आर्षेय व मानुष नामक चार प्रकार के तीर्थों की स्थिति), ब्रह्माण्ड २.३.१३.३ (श्राद्ध हेतु प्रशस्त तीर्थ का वर्णन), भविष्य १.३.६२ (दक्षिण हस्त पर देवतीर्थ आदि ५ तीर्थों की स्थिति), भागवत २.६.३(कर्णों से तीर्थ की उत्पत्ति का उल्लेख), ५.२०.२१(तीर्थवती : क्रौञ्च द्वीप की नदियों में से एक), मत्स्य १३ (तीर्थों में सती के १०८ नाम), २२ (श्राद्ध योग्य तीर्थ), १९१ (नर्मदा तटवर्ती तीर्थों का माहात्म्य), १९२ (शुक्ल तीर्थ का माहात्म्य), १९३ (भृगु तीर्थ का माहात्म्य), १९४ (नर्मदा तटवर्ती तीर्थों का माहात्म्य), वराह १२६ (कुब्जाम्रक तथा तदन्तर्वर्ती तीर्थों के माहात्म्य का वर्णन), वामन ३५, ३६ (कुरुक्षेत्र के तीर्थों के क्रम व माहात्म्य का वर्णन), वायु ५९.११० (वायु द्वारा स्थापित तीर्थ), ७७ (श्राद्ध हेतु प्रशस्त तीर्थ), १०४.७५ (शरीर में व्यास दृष्ट विभिन्न तीर्थों की स्थिति), १११.१/२.४९.१(गया में उत्तरमानस आदि ५ तीर्थों का माहात्म्य), विष्णुधर्मोत्तर ३.११९.९ (तीर्थ यात्रा आरम्भ में हंस की पूजा का उल्लेख), ३.२७३ (तीर्थ यात्रा के माहात्म्य तथा फल का वर्णन), ३.३२१.७ (तीर्थ यात्रा से प्रचेताओं के लोक की प्राप्ति), स्कन्द १.२.६४.२६(तीर्थ में फल प्राप्ति हेतु अपेक्षित क्रियाएं), १.३.६ (अरुणाचलस्थ विविध तीर्थों के माहात्म्य का वर्णन), २.३.७ (पञ्चधारादि तीर्थों के माहात्म्य का वर्णन), २.८.७.७ (अयोध्या में क्षीरोदक तीर्थ का माहात्म्य : राजा दशरथ द्वारा पुत्रेष्टि से पत्नियों हेतु क्षीर प्राप्ति का स्थान), २.८.७.३२ (धनयक्ष तीर्थ के माहात्म्य का वर्णन : विश्वामित्र द्वारा राजा हरिश्चन्द्र से प्राप्त धन की यक्ष द्वारा रक्षा का स्थान), २.८.८.३३ (अयोध्या में महारत्न तीर्थ के माहात्म्य का कथन),  २.८.८.३८ (अयोध्या में महाभर तीर्थ में स्नान व शिव पूजा के माहात्म्य का कथन), २.८.८.३८ (अयोध्या में दुर्भर तीर्थ के माहात्म्य का कथन : स्नान व शिव पूजा आदि), २.८.८.५० (अयोध्या में महाविद्या तीर्थ के माहात्म्य का उल्लेख), ३.१.१+ (राम द्वारा स्थापित सेतु तीर्थ के माहात्म्य का वर्णन), ३.१.३.७४ (धर्मपुष्करिणी तीर्थ में चक्र तीर्थ के माहात्म्य का वर्णन : सुदर्शन चक्र द्वारा तपोरत गालव की राक्षस से रक्षा), ३.१.४.१ (चक्र तीर्थ में गालव के तप में बाधा उत्पन्न करने वाले दुर्द्दम नामक राक्षस के चक्र द्वारा उद्धार का वर्णन), ३.१.१०.२३ (सेतु रूप गन्धमादन पर्वत पर स्थित पापविनाशन तीर्थ का माहात्म्य : शूद्र को शिक्षा देने वाले विप्र तथा शूद्र की जन्मान्तर में पापों से मुक्ति), ३.१.११+ (सीतासरोवर, मङ्गल अमृतवापी तीर्थ के माहात्म्य का वर्णन), ४.२.६९ (६८ तीर्थों के लिङ्गों का काशी में आगमन), ४.१.६.२६ (मानस / आध्यात्मिक तीर्थों का वर्णन), ४.१.२२.५८ (तीर्थों में प्रयाग की श्रेष्ठता), ४.२.८४ (तीर्थों के नाम), ५.१.१+ (अवन्ती क्षेत्र के अन्तर्गत तीर्थों का वर्णन), ५.२.८३.१५ (बिल्व व कपिल के परस्पर वाद में बिल्व द्वारा दान व तीर्थ के प्राधान्य तथा कपिल द्वारा ब्रह्म व तप के प्राधान्य का प्रतिपादन), ५.३.२+ (नर्मदा / रेवा आश्रित तीर्थों का वर्णन), ५.३.१९५ (देवतीर्थ में श्रीपति के अर्चन तथा माहात्म्य का वर्णन), ५.३.२२८ (परार्थ तीर्थयात्रा के फल का कथन), ६.१०६ (पृथिवी से लुप्त तीर्थों के नाम), ६.१०८ (६८ तीर्थों के नाम), ७.१.३ (तीर्थ नाम, माहात्म्य, प्रभास तीर्थ का माहात्म्य), ७.१.१० (पांच महाभूतों के अनुसार तीर्थों का विभाजन), ७.१.१०७ (तीर्थ अनुसार ब्रह्मा के नाम), ७.१.१३९ (तीर्थों में आदित्य के नाम), महाभारत वन ८२.९+ (तीर्थयात्रा के फल की प्राप्ति हेतु अपेक्षित गुणों का कथन, पुष्कर आदि तीर्थों की महिमा), ८७+(धौम्य द्वारा ४ दिशाओं के तीर्थों का वर्णन), लक्ष्मीनारायण १.१०७.३२ (गणेश द्वारा प्रदक्षिणा के संदर्भ में गृह में माता - पिता के तीर्थ होने का कथन ; पत्नी के लिए पति तीर्थ होने का उल्लेख), १.१४३ (रैवत पर्वत पर वस्त्रापथ क्षेत्र के तीर्थ), १.१५१ (तीर्थयात्रा विधि, सारस्वत विप्र तथा भोजराज का संवाद), १.१५२ (तीर्थ में पालनीय नियमों का वर्णन), १.२०६, २०७, २०८, २०९ (विविध तीर्थों का वर्णन), १.२१८ (द्वारका तीर्थ के माहात्म्य का वर्णन), १.२१९ (गोमती तीर्थ व चक्रतीर्थ का माहात्म्य), १.२२१+ (गोमती सागर सङ्गम, लक्ष्मी सप्त हृद, नृगकूप, रुक्मिणी, गोपीतडाग तीर्थों का वर्णन), १.३४१+ (विविध तीर्थों का वर्णन), १.४०४+ (विविध तीर्थों का वर्णन), १.४५६.४५ (भौतिक, मानसिक व आध्यात्मिक भेद से तीर्थों की विविधता, तीर्थ प्रशंसा), १.४९७ (भूतल पर स्थित विविध तीर्थक्षेत्रों तथा आध्यात्मिक तीर्थों का निरूपण), १.५१४.८(३ महत्त्वपूर्ण तीर्थों के नाम), १.५३८+ (विविध तीर्थों का वर्णन), २.८३.११ (राजा जयध्वज द्वारा पर्वतों को दैनिक जीवन में विभिन्न प्रकार के तीर्थों का वर्णन : स्थावर व जङ्गम तीर्थों की दिव्ययोग से दिव्य - रूपता ; आत्मा, साधु, गुरु, माता - पिता आदि सभी की तीर्थरूपता का वर्णन), ३.१९.८७ (तीर्थ पावनार्थ श्रीहरि के तीर्थ नारायण रूप में प्राकट्य का वर्णन), ३.४५.१३ (तीर्थयात्रा के पुण्य से तैर्थिकों को वह्निलोक की प्राप्ति), ३.८०.६६ (तीन प्रकार के तीर्थ, स्थूल भू तीर्थ की अपेक्षा सूक्ष्म मानस तथा दिव्य आत्म तीर्थ की प्राधान्यता का प्रतिपादन), ३.१८६.२१ (स्थावर व जङ्गम दो प्रकार के तीर्थों में जङ्गम तीर्थों की श्रेष्ठता का प्रतिपादन), महाभारत अनुशासन २५(भीष्म - युधिष्ठिर संवाद में विभिन्न तीर्थों के माहात्म्य का वर्णन), १०८(भीष्म द्वारा युधिष्ठिर को मानसिक तथा पार्थिव तीर्थों के महत्त्व का वर्णन ) ; द्र. आदित्यतीर्थ, देवीनाम, पृथूदक, शुक्लतीर्थ । teertha/ tirtha

 

तीव्रा ब्रह्माण्ड ३.४.४४.७२(५१ वर्णों के गणेशों की शक्तियों में से एक ) ।

 

तुं शिव ५.२६.४१ (घोष, कांस्य प्रभृति नव शब्दों का परित्याग कर तुंकार के अभ्यास तथा ध्यान से योगी की पुण्य पाप से अलिप्तता ) ।

 

तुङ्ग गणेश २.२०.३ (तुङ्ग आदि दैत्यों द्वारा गणेश के वध का यत्न, पक्षी रूपी गणेश द्वारा तुङ्ग का वध), पद्म ३.३९.४४ (तुङ्गकारण्य का माहात्म्य), वराह १४०.२९ (कोकामुख तीर्थ के अन्तर्गत तुङ्गकूट तीर्थ का माहात्म्य ) ; द्र. भृगुतुङ्ग, विक्रमतुङ्ग । tunga

 

तुङ्गभद्रा पद्म ६.१८७ (गीता के द्वादश अध्याय के माहात्म्य के वर्णन के अन्तर्गत तुङ्गभद्रा नदी तीरवर्ती हरिदीक्षित ब्राह्मण की पत्नी के दुराचार का वृत्तान्त), ६.१९६ (तुङ्गभद्रा नदी तीरवर्ती आत्मदेव ब्राह्मण व धुंधुली का पुत्र प्राप्ति का वृत्तान्त), ब्रह्माण्ड १.२.१६.३५(दक्षिणापथ की सह्य पर्वत से नि:सृत नदियों में से एक), भागवत ५.१९.१८(भारत की नदियों में से एक), मत्स्य ११४.२९(दक्षिणापथ की सह्य पर्वत से नि:सृत नदियों में से एक), वायु ४५.१०४(दक्षिणापथ की सह्य पर्वत से नि:सृत नदियों में से एक), शिव १.१२.१६ (दशमुखा तुङ्गभद्रा नदी का संक्षिप्त माहात्म्य), लक्ष्मीनारायण २.८०.७६ (बलेश्वर राज की तीन कन्याओं में से एक, वनेचर रूप धारी श्रीहरि के प्रति समर्पण का वृत्तान्त), २.८१.५० (हरि कृपा से बलेश्वरराज - कन्या तुङ्गभद्रा की नदी स्वरूपता, तुङ्गभद्रा तट पर तुङ्गभद्रानाथ की विराजमानता), ३.९.६५ (तुङ्गभद्रासना नामक योगिनी द्वारा सूर्यादि ग्रह - नक्षत्रों की गति का निरोध, व्याकुल देव मानव मण्डल द्वारा श्रीहरि की स्तुति ) । tungabhadraa

 

तुण्ड ब्रह्माण्ड २.३.७.१३५(तुण्डकोश : खशा के प्रधान पुत्रों में से एक), वायु ६.१७ (वराह के तुण्ड का स्रुवा से साम्य), ६९.१६७/२.८.१६१(तुण्डिकेश : खशा के प्रधान पुत्रों में से एक), स्कन्द २.१.३६.६(यज्ञवराह के तुण्ड के स्रुक रूप होने का उल्लेख), ४.२.५७.१०१ (द्वितुण्ड विनायक का संक्षिप्त माहात्म्य), लक्ष्मीनारायण १.५५०.५ (तुण्डीश्वर तीर्थ : तुण्डी ऋषि के योगबल से कूप में पतित हरिणों का जीवित होना, कूप का जल - पूरित होना ) । tunda

 

तुण्डिकेर ब्रह्माण्ड १.२.१६.६५(तुण्डिकेर : हैहय वंश की ५ शाखाओं में से एक, विन्ध्य पृष्ठ निवासियों के जनपदों में से एक), २.३.६९.५३(हैहय वंश की ५ शाखाओं में से एक, विन्ध्यपृष्ठ निवासियों के जनपदों में से एक), वायु ९४.५२/२.३२.५२(वही) । tundikera

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