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Puraanic contexts of words like Jeevana / life, Jrimbha, Jaigeeshavya, Jaimini etc. are given here.

 

जीवट योगवासिष्ठ ६.१.६२+ (स्वप्न शतरुद्रिय के अन्तर्गत समाधि अभ्यासरत भिक्षु द्वारा स्वप्न में स्वयं को जीवट, विप्र, सामन्त, राजा आदि के रूप में देखने का वर्णन), लक्ष्मीनारायण ३.८१.२७ (जीवट कीट को साधु कृपा से मनुष्य योनि प्राप्त होने का वर्णन ) ।

 

जीवदत्त कथासरित् ९.२.१०४ (मृत स्त्री को जीवित करने की विद्या जानने वाले जीवदत्त ब्राह्मण का कथन), ९.२.१३४ (कुरूप ब्राह्मण जीवदत्त के विवाह प्रस्ताव को अनङ्गरति द्वारा न मानने का उल्लेख), ९.२.१६८ (जीवदत्त द्वारा विद्याधरी को प्राप्त करने के अभिप्राय से विन्ध्यवासिनी देवी की उपासना करना), १२.१६.२९ (मृत प्राणियों को जीवित करने में कुशल जीवदत्त द्वारा अनङ्गरति के विवाह के लिए प्रस्ताव रखने का कथन ) । jeevadatta

 

जीवन विष्णुधर्मोत्तर ३.१८.१ (गायन में षड्ज ग्राम की १४ तानों में से एक जीवन का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.५७४.६५ (जीवन तीर्थ में स्नान का संक्षिप्त माहात्म्य : सिद्धि प्राप्ति), २.२३२.२३ (नवजीवन राक्षस द्वारा राजकन्या विद्युन्मणि का हरण, श्रीकृष्ण द्वारा दैत्यनाश व दैत्य - पत्नियों से पाणिग्रहण की कथा), ३.२२६.१ (आजीवनी नदी के तट पर सौराष्ट्र के गदार्दनेश्वर वैद्य की कथा), ४.५४.७० (जीवन - मरण को विधि - लिखित मानकर राजा युद्धराज द्वारा दासी व रानी के पुत्र - पुत्री को विष देने की कथा), ४.५४.७३ (दासी व रानी के मृत पुत्र - पुत्री को जीवनायन साधु द्वारा जीवित करने का वर्णन ) । jeevana/ jivana

 

जीवन्ती पद्म ७.१५.११ (परशु वैश्य की जीवन्ती नामक वेश्यावृत्ति - परा भार्या की रामनाम श्रवण से मुक्ति), लक्ष्मीनारायण १.४३०.१२ (निर्भयवर्मा नृप की कन्या जीवन्ती का उल्लेख ) । jeevanti/jeevantee

 

जुगुप्सा भागवत ११.१९.४० (मानव गुणों के अन्तर्गत जुगुप्सा की परिभाषा : अकरणीय कर्मों में लज्जा / ह्री), योगवासिष्ठ १.१५ (अहंकार जुगुप्सा नामक सर्ग), १.१८ (राम द्वारा व्यक्त काय जुगुप्सा), १.१९(राम द्वारा व्यक्त बाल्य जुगुप्सा), १.२० (राम द्वारा व्यक्त यौवन गर्हणा ) १.२१ (राम द्वारा व्यक्त स्त्री जुगुप्सा), १.२२(राम द्वारा व्यक्त जरा जुगुप्सा ) । jugupsaa

 

जुमासेम्ला लक्ष्मीनारायण २.५०.३१ (अब्रिक्त देश के राक्षस राजा जुमासेम्ला का वर्णन), २.५४.३९ (सनत्कुमार द्वारा राजा जुमासेम्ला को दानव भाव से मुक्ति हेतु उपदेश का प्रसंग), २.५६.७४ (जुमासेम्ला के जन्म व पराक्रम की कथा ) ।

 

जुष्ट लक्ष्मीनारायण ३.१८१.१(मांजुष्टा ग्राम के निवासी विराल वैश्य का वृत्तान्त), द्र. जोष्ट्री, देवजुष्टा ।

 

जुहू ब्रह्माण्ड १.१.५.१६(यज्ञवराह के जुहूमुख होने का उल्लेख ) juhu/juhoo

References on Juhu

 

जृम्भ अग्नि २१४.१६(अधिक मास के विजृम्भिका होने का उल्लेख), गणेश २.१४.४२ (जृम्भा : धूम्र राक्षस - पत्नी, महोत्कट गणेश को विषयुक्त तैल का मर्दन, गणेश द्वारा वध), २.१२७.१६ (ब्रह्मा की जृम्भा से भयानक पुरुष सिन्दूर की उत्पत्ति), देवीभागवत ६.४.३६ (इन्द्र की मुक्ति हेतु देवों द्वारा वृत्र मुख से जृम्भिका के सृजन का कथन), १२.६.६० (गायत्री सहस्रनामों में जृम्भा का उल्लेख), ब्रह्माण्ड ३.४.२५.९८ (भण्डासुर - सेनानी जृम्भण का विजया देवी द्वारा वध), स्कन्द ३.२.९.१०२ (जृम्भक यक्ष द्वारा देवों व द्विजों को त्रास), ४.२.७२.९८ (६४ वेतालों में से जृम्भण का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.४४०.४६ (जृम्भक द्वारा धर्मारण्य निवासियों को त्रास, श्रीकृष्ण द्वारा धर्मारण्य में गोपियों आदि का प्रेषण), २.१४६.१४६ (वास्तुशास्त्र में पश्चिम में जृम्भक की पूजा का कथन ) । jrimbha

 

जेता ब्रह्माण्ड ३.४.१.१६(प्रथम सावर्णि मन्वन्तर में २० अमिताभ देव गण में से एक), वायु १००.१६/२.३८.१६(प्रथम सावर्णि मन्वन्तर में २० अमिताभ देव गण में से एक ) । jetaa

 

जैगीषव्य अग्नि ३८२.८(जैगीषव्य के मत में परम श्रेय – ऋक्, यजु, साम के अनुसार कर्म - कर्त्तव्यमिति यत्कर्म्म ऋग्यजुःसामसंज्ञितं । कुरुते श्रेयसे सङ्गाज्जैगीषव्येण गीयते ।।), कूर्म २.११.१२९ (जैगीषव्य द्वारा कपिल से ज्ञान प्राप्ति का उल्लेख), गणेश २.३९.३३ (दुरासद असुर के काशी में आगमन पर जैगीषव्य को छोडकर शेष ऋषियों का पलायन - जैगीषव्यं विना सर्वे क्षेत्रसंन्यासिनं शुभे । ततो बभंज मूर्तिं स मोहाविष्टो दुरासदः ॥), गरुड ३.२३.४८+(कपिल तीर्थ में जैगीषव्य द्वारा जाम्बवती को वेंकटेश का माहात्म्य सुनाना), देवीभागवत ९.१८.१४ (शङ्खचूड द्वारा जैगीषव्य से कृष्ण मन्त्र की प्राप्ति का उल्लेख), ब्रह्मवैवर्त्त २.५२.१३ (जैगीषव्य द्वारा कृतघ्नता का वर्णन - पितृमातृगुरूंश्चापि भक्तिहीनो न पालयेत् ।। वाचाऽपि ताडयेत्तांश्च स कृतघ्र इति स्मृतः ।।..), ब्रह्माण्ड २.३.१०.२० (शतशलाक - पुत्र, एकपाटला - पति, शङ्ख व लिखित - पिता जैगीषव्य का उल्लेख), भागवत ९.२१.२६(विश्वक्सेन द्वारा जैगीषव्य के उपदेश से योगतन्त्र की रचना का उल्लेख), मत्स्य १३.९ (जैगीषव्य द्वारा मेना व हिमवान - पुत्री एकपर्णा की पत्नी रूप में प्राप्ति का उल्लेख), १८०.५८ (जैगीषव्य द्वारा वाराणसी के प्रभाव से सिद्धि प्राप्ति का उल्लेख - अस्य क्षेत्रस्य माहात्म्याद् भक्त्या च मम भावनात्। जैगीषव्यो महाश्रेष्ठो योगिनां स्थानमिष्यते ।।), महाभारत शल्य ५०( ), शान्ति २२९(जैगीषव्य – असित देवल संवाद - या गतिर्या परा निष्ठा या शान्तिः पुण्यकर्मणाम् । तां तेऽहं सम्प्रवक्ष्यामि यन्मां पृच्छसि वै द्विज ॥ ),  लिङ्ग १.२४.३७ (सातवें परिकल्प में जैगीषव्य मुनि का उल्लेख - सप्तमे परिवर्ते तु यदा व्यासः शतक्रतुः।।...जैगीषव्यो विभुः ख्यातः सर्वेषां योगिनां वरः।।), वराह (जैगीषव्य द्वारा राजा अश्वशिरा को विष्णु के दर्शन कराना व परमात्मा की सर्वत्र व्याप्ति का बोध कराना), वायु २३.१३८ (सप्तम द्वापर में शिव अवतार से जैगीषव्य के होने का कथन), ७२.१८ /२.११.१८ (शतशिलाक - पुत्र, एकपाटला - पति, शङ्ख व लिखित - पिता जैगीषव्य का उल्लेख), शिव २.५.२८.१ (जैगीषव्य द्वारा उपदेशित शङ्खचूड का वर्णन - ततश्च शंखचूडोऽसौ जैगीषव्योपदेशतः ।। तपश्चकार सुप्रीत्या ब्रह्मणः पुष्करे चिरम् ।।), ३.४.२७ (सातवें परिवर्त में भक्तों के उद्धार हेतु शिव के जैगीषव्य होने का कथन - सप्तमे परिवर्ते तु यदा व्यासः शतक्रतुः । तदाप्यहं भविष्यामि जैगीषव्यो विभुर्विधे ।।...), स्कन्द १.२.१३.१५४ (जैगीषव्य द्वारा ब्रह्मरन्ध्र रूपी लिङ्ग की पूजा, शतरुद्रिय प्रसंग - जैगीषव्यो ब्रह्मरन्ध्रं नाम योगेश्वरं जपन्॥), ४.२.६३.३१ (जैगीषव्य द्वारा शिव दर्शनार्थ तप, स्तुति का वर्णन), ४.२.९७.१७० (जैगीषव्य गुफा में तीन रात व्रत से शिवलिङ्ग आह्वान का उल्लेख - जैगीषव्य गुहा तत्र तत्र लिंगं तदाह्वयम्।।त्रिरात्रोपोषितस्तत्र ज्ञानं लभ्येत निर्मलम् ।।), ५.२.५९ (राजा अश्वशिरा से भेंट होने पर जैगीषव्य द्वारा सिद्धि से गरुड एवं रुद्र रूप धारण करने का प्रसंग), ७.१.१४.८ (शतकलाक - पुत्र जैगीषव्य द्वारा शिव स्तुति व तप करने से शिव से वर प्राप्ति का वर्णन), हरिवंश १.१८.२४ (हिमाचल व मेना की तीसरी पुत्री एकपाटला के जैगीषव्य से विवाह का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.२३९.५८ (जैगीषव्य द्वारा सुबाहु नृप के पितरों के उद्धार का उपाय बताना- राजन्नस्मत्सु मध्येऽयं समर्थो हि महामुनिः । भूतं भव्यं विजानाति जैगीषव्योऽतियोगवान् ।।), १.५२५.७१ (राजा अश्वशिरा को ईश्वर की सर्वत्र व्याप्ति का विश्वास कराने वाली जैगीषव्य की कथा - श्रुत्वा च कपिलस्तत्र पद्मनाभो बभूव ह । जैगीषव्योऽभवद् ब्रह्मा नाभिपद्मोपरि स्थितः ।। ) । jaigeeshavya

जैत्र भागवत १०.७१.१२(कृष्ण द्वारा दारुक, जैत्र आदि भृत्यों से विदा लेकर गरुडध्वज रथ पर आरूढ होने का उल्लेख), विष्णु ५.३७.५१(कृष्ण के जैत्र रथ के समुद्र से प्रकट होने का उल्लेख ) । jaitra

 

जैन पद्म १.१३.३५० (बृहस्पति द्वारा असुरों को जैन धर्म की दीक्षा का वर्णन), २.३७.२१ (पातक द्वारा वेन को जैन धर्म का वर्णन), भविष्य ३.२.१० (जैन धर्म की वैदिक धर्म से हीनता का वर्णन), विष्णु ३.१८.२ (देवताओं से पराजित होने हेतु मायामोह द्वारा दैत्यों को जैन - बौद्ध धर्म की दीक्षा देने व वैदिक धर्म से च्युत करने का वर्णन), शिव २.५.४, २.५.१२ (त्रिपुर मोहनार्थ विष्णु द्वारा उत्पत्ति, त्रिपुर दाह के अनन्तर कलियुग में जैनों द्वारा त्रिपुर मत का प्रचार), स्कन्द ३.२.३६.४३(राजा आम के जामाता कुमारपाल द्वारा जैन धर्म की स्थापना व ब्राह्मणों से विवाद ) । jaina

 

जैमिनि/जैमिनी कूर्म १.२९ (जैमिनी द्वारा व्यास से मोक्ष उपाय की पृच्छा, वाराणसी माहात्म्य का श्रवण), नारद २.७३.२८ (जैमिनी द्वारा शिव के ताण्डव नृत्य का दर्शन व स्तुति करना), पद्म २.९५ (सुबाहु - पुरोहित जैमिनी द्वारा कुबाहु को दान विषयक उपदेश), ७.१.२६ (जैमिनी द्वारा व्यास से कलिकाल में मोक्ष विषयक पृच्छा), भागवत १.४.२१(व्यास से सामवेद ग्रहण करने वाले शिष्य जैमिनि का उल्लेख), ९.१२.३(जैमिनि के योगाचार्य शिष्य हिरण्यनाभ का उल्लेख), १०.७४.८(युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ के ऋत्विजों में से एक), १२.६.५३(जैमिनि द्वारा व्यास से छन्दोग संहिता प्राप्त करने का उल्लेख), १२.६.७५(जैमिनि द्वारा स्वपुत्र सुमन्तु व पौत्र सुन्वान् को साम संहिताएं प्रदान करने का उल्लेख), मार्कण्डेय १.४ (वेदव्यास -शिष्य जैमिनी द्वारा मार्कण्डेय से वार्तालाप), ४.२ (जैमिनी द्वारा विन्ध्य पर्वत की कन्दरा में जाकर पक्षियों से वार्तालाप), ४५.१५९/४२.१५९ (जैमिनी द्वारा पक्षियों से सृष्टि - प्रलय विषयक वार्तालाप), वायु ६०.१३(शिष्य जैमिनि द्वारा व्यास से सामवेद ग्रहण करने का उल्लेख), ६१.२६(जैमिनि द्वारा स्वपुत्र सुमन्तु के अध्यापन का उल्लेख), ६१.४२(संहिता ज्ञान प्राप्त करने वाले लाङ्गलि के ६ शिष्यों में से एक), विष्णु ३.४.९(शिष्य जैमिनि द्वारा व्यास से सामवेद ग्रहण करने का उल्लेख), स्कन्द २.१.१३.५२ (जैमिनी द्वारा उन्मत्त धर्मगुप्त को स्वामिपुष्करिणी में स्नान का परामर्श), २.२.१ (जैमिनी द्वारा पुरुषोत्तम क्षेत्र का वर्णन), २.२.६(जैमिनी द्वारा ऋषियों से उत्कल तीर्थ का वर्णन करना), २.२.२५.२३(जैमिनि द्वारा रथ प्रतिष्ठा विधि का वर्णन), ३.१.३२.५३ (जैमिनी द्वारा धर्मगुप्त की उन्माद से मुक्ति हेतु नन्द को परामर्श का वर्णन), ४.२.९७.१९४ (जैमिनीश लिङ्ग के दर्शन से राक्षस भय न होने का उल्लेख), ६.५.६ (त्रिशङ्कु के यज्ञ में प्रतिहर्ता के रूप में जैमिनी का उल्लेख), ६.१८.७९ (राजा विदूरथ द्वारा जैमिनी आश्रम पहुंचने की कथा), ७.४.१०.११ (नृग द्वारा जैमिनी को गौ दान, पुन: दान से जैमिनी द्वारा शाप देने का वर्णन), लक्ष्मीनारायण १.५०१.९६ (शाण्डिल्य - पुत्री माधवी द्वारा तप से जैमिनी को पतिरूप में प्राप्त करने की कथा), ३.५१.६५ (चोलराज सुबाहु को पुरोहित जैमिनी द्वारा स्वर्ग प्राप्ति हेतु अन्न दान का परामर्श ) । jaimini/ jaiminee

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