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Puraanic contexts of words like Taaraa, Taarkshya, Taala etc. are given here.

तारका देवीभागवत १२.६.७१ (गायत्री सहस्रनामों में से एक ) ।

 

तारकाक्ष शिव २.५.१.८ (तारकासुर के तीन पुत्रों में से ज्योष्ठ पुत्र, मय द्वारा तारकाक्ष हेतु स्वर्णमय नगर का निर्माण ) ।

 

तारकामय ब्रह्माण्ड २.३.५.३२(तारकामय सङ्ग्राम में हिरण्याक्ष - पुत्रों के हत होने का कथन), भागवत ९.१४.४(तारा हरण के कारण घटित तारकामय सङ्ग्राम का वृत्तान्त), मत्स्य ४७.४३(१२ देवासुर सङ्ग्रामों में पञ्चम), १२९.१६ (तारकामय सङ्ग्राम में हत, ताडित असुरों द्वारा सुरक्षा हेतु त्रिपुर दुर्ग बनाना), १७२.१०(तारकामय सङ्ग्राम में देवों के हारने पर विष्णु द्वारा दैत्यों के नाश का वर्णन), वायु ६७.६९/२.६.६९(हिरण्याक्ष - पुत्रों के तारकामय सङ्ग्राम में हत होने का उल्लेख), ७०.८१/२.९.८१(तारकामय सङ्ग्राम में लोक के अनावृष्टि से हत होने पर वसिष्ठ द्वारा तप से प्रजा को धारण करने का कथन), ९०.३३/ २.२८.३३(चन्द्रमा द्वारा तारा हरण के कारण देव - दानव तारका मय सङ्ग्राम का कथन), विष्णु ४.६.१६(तारा हरण के कारण तारकासुर सङ्ग्राम का कथन ) । taarakaamaya

 

तारा अग्नि १२१.५९ (जन्मकुण्डली में तारा विचार), १३२.१४ (तारा चक्र / नक्षत्र द्वारा फल विचार), १४६.१६(वैष्णवी कुल में उत्पन्न देवियों में से एक), गरुड ३.८.४(तारा द्वारा हरि स्तुति), ३.२८.५१(शची का अवतार, वालि व सुग्रीव – भार्या, चित्राङ्गदा से तादात्म्य),  देवीभागवत १.११.५ (बृहस्पति - भार्या, चन्द्रमा द्वारा तारा का उपभोग, बुध उत्पत्ति प्रसंग), ७.३०.७६ (किष्किन्धा पर्वत पर देवी की तारा नाम से स्थिति), नारद १.८५.३५ (सरस्वती - अवतार, तारा मन्त्र व विधान का वर्णन), पद्म १.१२ (चन्द्र द्वारा बृहस्पति - पत्नी तारा का हरण, तारा से बुध की उत्पत्ति का प्रसंग), ब्रह्म १.७.२० (चन्द्रमा द्वारा बृहस्पति की पत्नी तारा के हरण का प्रसंग), २.८२ (चन्द्रमा के बन्धन से मुक्ति पर तारा द्वारा शुद्धि हेतु गौतमी में स्नान), ब्रह्मवैवर्त्त २.५८ (चन्द्रमा की तारा पर आसक्ति, अपहरण तथा रमण का वर्णन), २.६१ (बृहस्पति - शिष्यों द्वारा तारा का अन्वेषण, ब्रह्मा का शुक्र गृह गमन, बृहस्पति को तारा की प्राप्ति, तारा से बुध नामक कुमार का जन्म), ४.८०+ (तारा द्वारा हरणकर्त्ता चन्द्रमा को यक्ष्मा का शाप, चन्द्र - तारा आख्यान), ब्रह्माण्ड  १.२.३३.१८(ब्रह्मवादिनी अप्सराओं में से एक तारा का उल्लेख), २.३.७.२१९ (सुषेण - पुत्री, वाली - भार्या, अङ्गद - माता), २.३.६५.२९(राजसूय के पश्चात् सोम द्वारा तारा हरण के कारण तारकामय देवासुर सङ्ग्राम का वृत्तान्त), ३.४.१.८५ (१२वें मन्वन्तर में हरितगण के १० देवों में से एक), ३.४.३५.१२ (मन:शाला में तरणि/नौका शक्ति तारा व उसकी परिचारिकाओं के महत्त्व का वर्णन), भविष्य ४.९९.५ (प्रजापति - कन्या, वृत्र - अनुजा, बृहस्पति - भार्या, चन्द्रमा द्वारा हरण का वृत्तान्त), भागवत ९.१४.४ (बृहस्पति - पत्नी, चन्द्रमा द्वारा हरण, ब्रह्मा के आदेश से तारा का पुन: बृहस्पति के पास आगमन, बुध का जन्म), मत्स्य १२.५४(तारापीड : चन्द्रावलोक - पुत्र), १३.४६(किष्किन्धा पर्वत पर सती की तारा नाम से स्थिति का उल्लेख), २३.३०(राजसूय के पश्चात् सोम द्वारा तारा हरण के कारण तारकामय देवासुर सङ्ग्राम का वृत्तान्त), २४.२ (तारा से बुध की उत्पत्ति), लिङ्ग २.१३.१६(रोहिणी : सोम रूपी शिव की पत्नी, बुध - माता), वराह ३२.१० (चन्द्रमा द्वारा बृहस्पति - भार्या तारा को ग्रहण करने की इच्छा, धर्म की उद्विग्नता का वर्णन), वायु २७.५६(महादेvव की अष्टम मूर्ति चन्द्रमा व उसकी पत्नी रोहिणी से बुध पुत्र का उल्लेख), ९०.२८ (बृहस्पति - पत्नी, चन्द्रमा द्वारा हरण, चन्द्रमा व तारा से बुध का जन्म), १००.८९/२.३८.८९(१२वें मन्वन्तर में हरित वर्ग के १० देवों में से एक), विष्णु ४.६.१०(सोम द्वारा तारा के हरण के कारण तारकामय सङ्ग्राम का वृत्तान्त , सोम व तारा - पुत्र बुध का वृत्तान्त), शिव ५.४७.१५(उग्रतारा : गौरी के शरीर से नि:सृत कुमारी के कौशिकी, उग्रतारा, महोग्रतारा, मातङ्गी प्रभृति अनेक नाम), स्कन्द ४.१.१५.६२(तारा का रोहिणी से साम्य?),  हरिवंश १.२५.३० (बृहस्पति - भार्या, चन्द्रमा द्वारा हरण, बुध नामक पुत्र की उत्पत्ति), स्कन्द ४.१.१५ (तारा से बुध की उत्पत्ति का आख्यान), ४.१.२७.१६७ (गङ्गा का एक नाम), ४.१.२९.७३ (गङ्गा सहस्रनामों में से एक), ४.२.५८.६१ (तारागण : शिव रथ में कील बनना), ५.३.१९८.८४ (किष्किन्ध पर्वत पर देवी की तारा नाम से स्थिति), वा.रामायण ४१५.६ (वाली - पत्नी, पति को सुग्रीव से युद्ध न करने का परामर्श), ४.१९+ (सुषेण - पुत्री, वाली की मृत्यु पर विलाप), ४.३३+ (तारा द्वारा लक्ष्मण के क्रोध की शान्ति का उद्योग), लक्ष्मीनारायण १.७९.१८ (सोम द्वारा बृहस्पति - पत्नी तारा का हरण, तारा से बुध की उत्पत्ति), १.४४५ (चन्द्र द्वारा बृहस्पति - पत्नी तारा का हरण, तारा का शाप प्रदान हेतु तत्पर होना, आकाशवाणी द्वारा तारा की शाप - प्रदान से निवृत्ति, चन्द्र व तारा का शुक्राचार्य की शरण में गमन, तारा प्राप्ति हेतु बृहस्पति की मन्त्रणा का वर्णन), १.४४५.३१(श्व दम्पत्ति के मिथुन में विघ्न से प्राप्त शाप के परिणाम स्वरूप तारा के चन्द्रमा से संयोग का कथन), १.४४६.४४(चन्द्रमा द्वारा तारा हरण के संदर्भ में सत्य तारा के सूर्य में तिरोहित होने तथा छाया तारा के चन्द्रमा को प्राप्त होने का कथन ) ।

संदर्भ : प्रजापतिर् उषसं स्वां दुहितरं बृहस्पतये प्रायच्छत्। तस्या एतत् सहस्रम् आश्विनं वहतुम् अन्वाकरोत्। - जै.ब्रा. १.२१३ Taaraa/tara

 

ताराक्ष स्कन्द ४.१.१२ (ताराक्ष भिल्ल द्वारा तीर्थयात्रियों को लूटना ) ।

 

तारादत्ता कथासरित् ६.१.५५ (कलिङ्गदत्त नृप की पत्नी), ६.१.२११ (कलिङ्गदत्त - पत्नी तारादत्ता के गर्भ धारण का उल्लेख), ६.३.३३ (कलिङ्गसेना द्वारा माता तारादत्ता व पिता कलिङ्गदत्त से सखी सोमप्रभा का परिचय कराने का उल्लेख ) । taaraadattaa/ taradattaa

 

तारावली कथासरित् ८.१.५६ (सूर्यप्रभ द्वारा वज्रसार नगरी निवासी राजा रम्भ की तारावली नामक कन्या के अपहरण का उल्लेख), १२.२.९० (तारावली नामक विद्याधर - कन्या की रङ्कुमाली नामक विद्याधर - कुमार पर अनुरक्ति, विवाहादि का कथन), १२.१८.४ (धर्मध्वज नृप की तीन रानियों में से एक, चन्द्रकिरणों के स्पर्श से तारावली के शरीर में दाह की उत्पत्ति होने का कथन), १८.४.८२ (विक्रमादित्य द्वारा गन्धर्वराज - कन्या तारावली के वरण का उल्लेख ) । taaraavalee/ taravali

 

तारावलोक कथासरित् १६.३.११(मनुष्य होते हुए भी तारावलोक द्वारा विद्याधरों के चक्रवर्ती पद प्राप्त करने का वृत्तान्त ) ।

 

तारेय पद्म १.६९ (स्कन्द द्वारा तारेय का वध ) ।

 

तार्क्षी मार्कण्डेय २.३१ (कन्धर व मदनिका - सुता, द्रोण - भार्या, कुरुक्षेत्र के युद्धक्षेत्र में तार्क्षी की मृत्यु , तार्क्षी - सन्तति रूप में चटकोत्पत्ति का प्रसंग ) । taarkshee

तार्क्ष्य अग्नि १३३.१९ (तार्क्ष्य मन्त्र चक्र द्वारा बाधा नाश, तार्क्ष्य का स्वरूप), २९५ (सर्प दंश चिकित्सा हेतु तार्क्ष्य मन्त्र व तार्क्ष्य ध्यान का वर्णन), ब्रह्माण्ड १.२.२३.१८ (तार्क्ष्य सेनानी व अरिष्टनेमि ग्रामणी की सूर्य रथ में स्थिति), भागवत ६.६.२२(तार्क्ष्य/कश्यप की विनता आदि ४ पत्नियों से उत्पन्न पुत्रों का कथन), १२.११.४१(सह/मार्गशीर्ष मास में सूर्य रथ पर तार्क्ष्य यक्ष की स्थिति का उल्लेख, पुष्य में अरिष्टनेमि), वायु ५२.१८(हेमन्त में सूर्य रथ के साथ उपस्थित सेनानी तार्क्ष्य का उल्लेख), विष्णु २.१०.१३(मार्गशीर्ष मास में सूर्य रथ पर तार्क्ष्य यक्ष की स्थिति का उल्लेख), शिव २.१.१६.२७(दक्ष द्वारा पररूप तार्क्ष्य को ४ कन्याएं पत्नी रूप में देने का उल्लेख), स्कन्द १.२.१३.१६६ (शतरुद्रिय प्रसंग में तार्क्ष्य द्वारा ओदन लिङ्ग की हर्यक्ष नाम से उपासना), १.२.१३.१८८ (शतरुद्रिय प्रसंग में तार्क्ष्य द्वारा पृथु लिङ्ग की सहस्रचरण नाम से अर्चना), ४.२.५८.४४ (तार्क्ष्य तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), कथासरित् १०.४.१९४ (तार्क्ष्य /गरुड के निवेदन पर श्रीहरि द्वारा समुद्र को सुखाकर टिट्टिभ - दम्पत्ति को अण्डे लौटाने की कथा ) । taarkshya

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ताल गर्ग २.८/२.११ (तालवन में बलराम द्वारा धेनुकासुर के उद्धार की कथा), पद्म १.२८.३० (ताल वृक्ष : अपत्य नाशक), ४.२१.२६ (कार्तिक व्रत में ताल भोजन से शरीर नाश का उल्लेख),  ६.१८२ (भ्रष्ट ब्राह्मण भावशर्मा का मृत्यु पश्चात् ताल वृक्ष बनना, गीता के अष्टम अध्याय श्रवण से मुक्ति), ब्रह्माण्ड १.२.७.९७ (अङ्गुष्ठ से मध्यमा अङ्गुलि तक के प्रदेश का ताल नाम?), १.२.१६.५०(तालशाल : भारत के उत्तर के राज्यों में से एक), १.२.१८.८६(चक्षु नदी द्वारा प्लावित जनपदों में से एक), ३.४.२.१४६(नरकों में से एक), भागवत १०.१५.२२(कृष्ण व बलराम द्वारा तालवन में धेनुकासुर के वध का वृत्तान्त),  मत्स्य २५८.१६(विष्णु की मूर्ति की पीठिका में नव ताल प्रमाण के देव, दानव, किन्नर बनाने का निर्देश), लिङ्ग १.४९.६० (तालवन में इन्द्र, उपेन्द्र तथा मुख्य सर्पों की स्थिति का उल्लेख), वराह ७९.२०(महानील व ककुभ नामक पर्वतों के मध्य स्थित तालवन का वर्णन), वायु ८.१०३/१.८.९८(अङ्गुष्ठ से मध्यमा अङ्गुलि तक के दैर्घ्य के ताल नाम का उल्लेख), १०१.१४६/२.३९.१४६(नरकों में से एक), १०१.१५३/२.३९.१५३(ताल नरक प्रापक कर्मों का कथन), विष्णु २.६.२(नरकों में से एक ताल का उल्लेख), ५.८.१(कृष्ण व बलराम द्वारा तालवन में धेनुकासुर के वध का वृत्तान्त), विष्णुधर्मोत्तर ३.१०६.३५ (ताल : संकर्षण का केतु , आवाहन मन्त्र), स्कन्द २.२.२५.१४(हस्त तल में नित्य दर्पण की स्थिति होने से ताल होने का कथन), ४.२.७०.७७ (ताल जङ्घेश्वरी देवी का संक्षिप्त माहात्म्य), ६.२५२.२५(चातुर्मास में सप्तर्षियों की महाताल वृक्ष में स्थिति का उल्लेख), हरिवंश २.१३.३ (तालवन : बलराम द्वारा तालवन में धेनुकासुर का वध), वा.रामायण ४.४०.५३(पूर्व दिशा में शेषनाग की ताल के चिह्न से युक्त तीन शिरों वाली काञ्चन केतु /ध्वज का कथन), लक्ष्मीनारायण १.४४१.८७ (वृक्षों के देवतादि अवतार प्रसंग में सप्तर्षियों के महाताल वृक्ष होने का उल्लेख), २.१६.५७ (शत्रुञ्जय पर्वत पर सौराष्ट्र के कङ्कताल नामक दैत्यों द्वारा श्रीहरि पर आक्रमण, श्रीहरि द्वारा गरुड पर आरूढ होकर विराट रूप धारण कर सुदर्शन चक्र आदि से दैत्यों का वध आदि), २.१७.३ (कङ्कताल दैत्यों की पत्नियों का श्रीहरि पर वृक्ष की शाखाओं से आक्रमण, श्रीहरि द्वारा काललक्ष्मी रूप धारण कर दैत्य - पत्नियों का निग्रह), ३.१४३.७९(चार युगों में मनुष्यों के ताल मानों का कथन), कथासरित् १.५.२० (सरस्वती के आदेशानुसार शकटाल का तालवृक्ष पर बैठकर राक्षसी व बच्चों के परस्पर वार्तालाप द्वारा मृत मत्स्य के हास्य का कारण जानने का प्रसंग ) । taala

 

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